Wednesday, 27 April 2016

कविता ६४७. किताब को पढने से ज्यादा

                                              किताब को पढने से ज्यादा
किसी किताब मे पढी बात से भी ज्यादा जिन्दगी ने जो बताई है वह बात जरुरी है हमारे जीवन मे सबसे ज्यादा क्योंकि वही तो जीवन का एक राग बन के गाते है
जीवन मे हर एक चीज जरुरी है दुनिया मे कई रंगों को समझ लेने से ज्यादा क्योंकि दुनिया तो रंग बदलती है तो क्या जरुरत उस रंग को परखने कि जिन्हे जीवन से जाना है
जीवन कि किसी गलत किताब को पढ के जो जीवन को सीख लोगे तो जीवन मे मुसीबते आती है खुशियों से ज्यादा तो सही चीज को समझ लेने कि सबसे ज्यादा जरुरत होती है
जीवन मे जो समझ लिया है वह चीजे परख लेनी जरुरी है जीवन के इशारों को समझ लेने से ज्यादा हमे किनारों को परख लेने कि जरुरत होती ही है
जब जीवन को ताकद से जिये तो उसे आगे जाने कि जरुरत होती है हर पल सबसे ज्यादा हमे जीवन को परख लेने कि हर मोड पर हर दम जरुरत होती है
जीवन को समझ लेना तो हम चाहते है हर दम मन के अंदर से जिसे समझकर आगे जाते है उस जीवन को कई किनारों मे समझ लेने कि जरुरत सबसे ज्यादा होती है
कोई क्या समझाये जीवन मे हर किसी को मन मे अपनी असली जरुरत तो हर बार हर पल पता ही होती है पर जाने क्यूँ जीवन कि किंमत ही हमे नही होती है
जीवन के अंदर कई बार हमे जरुरत तो होती है किताबों से ज्यादा जीवन कि दिशाए कुछ अलग होती है जिनकी हमे जरुरत होती है
क्योंकि सही किताब पढने कि जगह गलत किताब पढने कि जीवन मे हमे आदत होती है सबसे ज्यादा हमे जीवन कि मुसीबते समझ लेनी होती है
जीवन को समझ लेने कि जरुरत होती है सही किताब से ज्यादा क्योंकि जीवन कि दिशाए कई मोडों से आगे बढती है
पर किताब सही हो तो उसे पढने कि जरुरत लगती है जीने से ज्यादा फिर भी किताब नीचे रख कर हमे जिन्दगी तो जीनी ही पढती है 

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