Friday, 15 April 2016

कविता ६२२. फूलों को बाँटना

                                              फूलों को बाँटना
हर बार हम कहते है दुनिया को जस्बात समझ लेने कि फुरसत कहाँ होती है तो फिर हम उन्हे क्यूँ नही समझ पाते है जाने क्यूँ दुनिया का एक हिस्सा बन जाते है
माना कि दुनिया तो काटे ही दे जाती है पर हम लोगों को फूल कहाँ देते है हम तो अक्सर उन्हे कुछ भी नही देते है जिन्हे समझ लेने कि जरुरत हर बार होती है
काटे ना दे यह बात काफी नही होती है कभी कभी फूल दे जाने कि जरुरत हर बार हर मोड पर हम अक्सर मन मे रखते है हमे चाहत तो होती है पर हम खुशियाँ कहाँ देते है
जीवन को हर मोड को बदलकर हम दुनिया मे जीना सीख लेते है हम मन से चाहते तो है पर काटों से हम भी तो अक्सर डरते है
उन काटों का डर ही तो हमे आगे ले नही जा सकता है जीवन मे फूलों कि अक्सर जरुरत होती है पर सबसे जरुरी होता है कि हम काटों से ना डरे यही जरुरत होती है
काटे तो जीवन का हिस्सा अक्सर होते है पर उनसे जाने क्यूँ हम डर के पीछे हट जाते है क्योंकि अगर हम फूल बाँटे तो ही तो काटे छुप पाते है
जीवन मे हमने कई मोड तो देखे है जिनमे कोशिश के बाद भी कहाँ हम आगे बढते है क्योंकि फूल बाँटने कि कोशिश मे हम कहाँ रहते है
हम सिर्फ यही समझते है कि काटे तो दूसरों कि बजह से ही जीवन मे होते है पर हम जो काटे नही रोकते है बस अपनी ही दुनिया मे रोते है वह भी हमारी जिम्मेदारी होते है
काटे कितने दर्दनाक होते है जो जीवन को चोट देते है पर फिर भी फूलों को बाँट कर हम अपनी दुनिया बदल सकते है क्योंकि फूल ही तो उनका जवाब होते है
हमे काटों से ज्यादा फूलों को समझकर आगे जाते है तो ही हम दुनिया को आसानी से समझ पाते है काटे आग से जलते नही फूल ही उनकी दवा बनकर आते है

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