Wednesday 20 April 2016

कविता ६३३. जीवन कि धूप और छाव

                                          जीवन कि धूप और छाव
हर कदम जीवन मे कुछ बात अलग होती है जिस कदम के साथ जीवन कि सौगाद बनती है जो जीवन को हर बार मतलब देती है वही तो जीवन कि सच्ची शुरुआत होती है
जो जीवन गुजरा है किसी पेड कि छाव मे उस जीवन मे कहाँ दुनिया समझ पाती है उस जीवन मे तो आगे जाने कि बस सीख मिलती है जिसके साथ आगे बढने कि जरुरत होती है
जीवन को कई कदमों मे समझ लेना ही तो जीवन कि सच्ची ताकद होती है जो हर कदम पर हमारी दुनिया बदलकर नई शुरुआत करती है हमे मौका दे जाती है
कभी उस शुरुआत मे गिर भी जाये तो उसमे जीवन कि नसीहत मिलती है जब छाव छोडकर आगे बढ जाये तो धूप पहले अक्सर चुभती है जो जीवन कि उम्मीदे होती है
छाव से ऊपर उठने कि जीवन मे जरुरत तो होती है हमे धूप को सहने कि हर पल जरुरत होती है जो जीवन को कई किनारों तक लेकर धीमे से चलती है
हमे जीवन मे छाव कि किंमत तो होती है पर अगर उसमे ही रुके रहे तो दुनिया कहाँ समझ आती है उम्मीदे कहाँ जीवन कि पूँजी बन पाती है
हर कदम को समझ लेने कि जरुरत होती है कभी धूप मे जीने कि तो कभी छाव मे जाने कि चाहत होती ही है जो जीवन को रोशनी देकर जाती है
धूप कि आँच तो पहले परेशानी कि बजह हर पल बन जाते है उन्हे नये सीरे कि जरुरत हर मोड पर होती ही रहती है जिसे समझ लेने कि सोच तो होती ही है
छाव से बाहर निकल कर छूप जब आगे आती है मन को खुशियाँ हर पल देकर ही जाती है मन कि नई सौगाद बन के मुस्काराती है
छाव और धूप दोनों ही मन को प्यारी लगती है एक अलगसी प्यास जीवन मे हर बार हर पल जगाकर जाती है कि धूप और छाव दोनों मे जरुरत जीवन को हर पल होती ही है
जिन्हे समझकर आगे जाने कि चाहत हर बार होती ही है क्योंकि बिना धूप जिन्दगी आगे नही जाती है और छाव के बिना ठंडक नही आती है

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