Thursday 2 June 2016

कविता ७१८. मन कि चोट

                                                   मन कि चोट
सूरज कि किरण कि गर्मी तन को जलाती है पर हर बार मन कि चोट जीवन को बदलकर आगे बढती चली जाती है दिशाए बदलती जाती है
तन कि चोट तो सह जाते है मन कि चोट दिशाए बदलकर आगे बढती जाती है जीवन कि दिशाए बदलकर रख देती है क्योंकि मन कि चोट ही तो जीवन बदलकर जाती है
कोई हार तो आसानी से समझ आती है पर दोस्त का धोका ही तो जीवन बदल देता है बाकी चीजों को मन हर पल सह जाता है
पर हर किसी के किस्मत वह नही होता है यही सोचकर जी खुशी से आगे बढ जाता है हर चोट को दर्द को आसानी से सह जाता है
जीवन को समझ लेना हर पल आसान नही होता है जो जीवन को हर पल बदल जाता है उस पल को ना पाये तो दुनिया खुबसूरत कह लाती है
पर गम कि बात तो यह है यह बात कही ना कही तो किस्मत मे आती ही हर बार हर राह पर संभल जाये इतनी आसान किस्मत नही होती है
कुछ रास्तों पर वह संभलती है पर कुछ रास्तों पर वह उलझ भी जाती है मुश्किल भी देकर जाती है किनारों को उलझन बनाकर जाती है
कभी सही तो कभी मुश्किल देकर भी जीवन मे आसान दिशाए देकर आगे बढती चली जाती है जीवन कि दिशाए बदलकर जाती है
सबकी किस्मत एकसी नही होती है वह हर पल बदलती जाती है कभी किसी मोड पर आसान तो किसी मोड पर उम्मीद देकर आगे बढती चली जाती है
क्योंकि किस्मत हमे हर गम देती नही तो क्यूँ डरे उस गम को जो हमे नही देती है जब तक उम्मीद है तब तक जीवन की आस नही छुटती है

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