Tuesday, 21 June 2016

कविता ७५७. हल्कीसी हवाए

                                               हल्कीसी हवाए
हल्कीसी हवाए हर बार एक बात नही कहती है वह हर बार जीवन को समझकर आगे बढती रहती है सोच को बदलकर कुछ कहती है
सीधीसी हवाए दुनिया को समझ देती है उन्हे परखकर चलने कि ख्वाईश हर बार सुनाती रहती है पर उनको समझ लेना हर बार आसान नही होता है
जब हवाए जीवन कि कहानी को कुछ अलग अंदाज मे कहती है जीवन को समझकर आगे बढते रहने कि जरुरत हर पल रहती है
हवाओं के एहसास को समझकर जीवन कि आवाज अचानक बदलती है क्योंकि जाने क्यूँ मन मे छुपी बात हवाए कहती रहती है
जब हल्केसे छूँ कर हम को वह आगे बढती रहती है उन्हे समझ लेने कि कोशिश मे जिन्दगी गुजरती जाती है जो हवाए बताना चाहती है
एक अजब संगीत है हवाओं का जो हमे दिशाए दे जाता है जिसे समझ लेना हमे कभी कभी आता है पर फिर भी हर पल हवाए हमे समझना चाहती है
कितनी अजीब बात है हम तो हवाओं को नही समझते पर वह हमे आसानी से समझ लेती है हमारी दुनिया बदलना चाहती है
हल्की फुल्की हवाए ही तो हमे दिशाए देकर आगे बढती जाती है जीवन को समझ लेना दुनिया का दस्तूर है लेकिन वह अलग सोच दिखाती है
वह खुदसे पहले हमे रखकर हमारे मन को ठंडक पहुँचाती है वह हमारे जीवन कि भाषाए बदलकर जाती है वह हमे कुछ नया सिखाती है
वह बताती है जब हम को ना समझे तो भी बात समझाती है जीवन मे बाते आसान बनाकर जीवन कि राहे बदलकर जाती है
जो ना समझे उसे भी बार बार समझाने कि सोच देकर हमे हर पल आगे लेकर चलती चली जाती है जीवन कि राहे बदलकर जाती है 

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