Thursday 16 June 2016

कविता ७४६. किनारे कि तलाश

                                             किनारे कि तलाश
किनारा तो समझकर जीवन के अंदर हमे उजाला देता है पर कोई किनारा जीवन का एहसास बदलकर चलता रहता है
किनारे पर जीवन कि निशानी समझकर आगे बढते रहने कि जरुरत होती है क्योंकि जीवन मे कई मौकों पर जीवन कि कहानी बनती है
किनारा ही परख लेना जीवन कि कहानी होती है किनारों से ही तो दुनिया कि हर मोड और हर पल कि कहानी जिन्दा रहती है
पर कई बार किनारों मे बस पत्थरों कि निशानी नजर आती है वही जीवन को चोट दे जाती है वहाँ कहाँ दुनिया जिन्दा रह पाती है
किनारों को समझकर ही तो दुनिया मिलती है किसी किनारे पर खुशियाँ तो किसी किनारे पर गमों कि बरसात नजर आती है
किनारा ही तो जीवन कि पेहचान होती है जिसे समझ लेने कि जरुरत हर पल होती है क्योंकि कुछ किनारों से बेहतर तूफान होते है
जगह कि पेहचान उसके एहसास से ही बनती है सिर्फ किनारा होना यह बात जीवन मे काफी नही होती है वह आगे बढकर ले जाती है
किनारों को बस जीवन मे अपनाने कि जरुरत नही होती है उन्हे समझकर आगे बढने कि जरुरत अहमियत हर पल होती है
किसी किनारे पर सिर्फ रुकने कि जरुरत नही होती है हमे सही किनारे कि जरुरत होती है गलत किनारे से बेहतर तो जीवन मे लहरे होती है
क्योंकि लहरों मे एक तलाश होती है वह लहरे ही है जिसके बजह से दुनिया को सही दिशाए मिलती है और किनारों कि तलाश खत्म होती है

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