Friday, 3 June 2016

कविता ७२१. जीवन कि लकिर

                                          जीवन कि लकिर
जब किसी दिशा मे देखती हूँ जाने क्यूँ आपकी लकिर दिख जाती है जो जीवन मे खुशियाँ लेकर आती रहती है जो जीवन की दिशा बदलकर जाती है
किसी लकिर मे ही तो जीवन कि खुशियाँ बसी रहती है जो जीवन कि सोच को बदलकर आगे लेकर जाती है जो जीवन मे उम्मीदे देकर जाती है
हर लकिर मे ही तो जीवन कि मंजिल छुपी होती है जो जीवन कि उम्मीद बनती है आगे चलती जाती है वही तो जीवन कि नई किरण होती है
हमे लकिरों से उलझने कि जरुरत हर पल नही होती है जो हमे हर पल आगे बढना सीखाती रहती है जो हमे परखकर आगे चलती जाती है
जीवन कि किरण तो लकिरों से ही तो पैदा होती है जो दुनिया को हर बार अलग पेहचान देकर आगे बढती जाती है नई किरण देकर जाती है
हर लकिर मे ही तो दुनिया बनती है जो जीवन को मतलब दे जाती है जीवन मे नया मकसद देकर आगे बढती नजर आती है
हर लकिर जीवन कि सोच होती है जो साँसों को उम्मीदे देकर आगे बढती चली जाती है वही तो हमारी जरुरत नजर आती है
लकिर ही तो हमारे जीवन कि पेहचान होती है जो जीवन कि ताकद बनकर आगे बढती चली जाती है क्योंकि वही हमारी जिन्दगी होती है
हर लकिर मे किस्मत हर बार कोई सोच देकर आगे बढती जाती है जो जीवन कि ताकद बनकर आगे बढती जाती है उम्मीदे देकर जाती है
लकिर को बिना समझ जाये या समझ ले असर तो वह बस वही देकर जाती है क्योंकि लकिर तो हमारी किस्मत होती है जो उसे समझकर हस दे उसकी जिन्दगी खुशकिस्मत रहती है 

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