Sunday, 12 June 2016

कविता ७३९. किसी खत मे लिखी बात

                                         किसी खत मे लिखी बात
किसी खत मे लिखी बातों को कोई पढकर घंटों तक सुनता है तो कोई किसी खत को अनपढे ही किसी कोने मे रखता है
जब होता है यह हम से तो मन कोई बात को गुनाह कहता है पर खुदसे तोडे हुए वादों को इन्सान अक्सर बिना मतलब कि बाते कहता है
पर सबसे बुरी तो वह बात है जब कोई खत मतलब से पढता है फूलों कि जगह काटों से लोगों का दामन भरता है जीवन को धीरे से परखता है
खत को तो इन्सान अक्सर जीवन मे समझ लेता है खत के अंदर जीवन कि कहानी निशानी के अंदर समझ लेता रहता है
खत मे लिखे एहसास को वह फुरसत मे समझ लेता है पर उनका इस्तेमाल वह एक मकसद से करता है वह जीवन को शतरंज समझकर जीता रहता है
हमने तो अक्सर खतों मे जस्बातों को पढा है पर ऐसे इन्सानों के बारे मे कई किताबों मे पढा है उनके बारे मे कई लोगों ने लिखा है
जीवन मे ऐसा इन्सान हमे ना कभी मिला है क्योंकि मतलबी इन्सानों के खतों को हमने अनपढे ही अक्सर रखा है
कोई कह भी दे जवाब जरुरी है पर उन खतों को दूर ही रखना हमने सही समझ लिया है जीवन को हर बार अलग तरह से सुन लिया है
कई तरह के खतों मे हमने जीवन को सुना और समझ लिया है जिन्हे रखते है हम जीवन मे उन खतों को अलग जस्बात से समझ लिया है
लिखना तो जरुरी है पर उन खतों को समझकर उन्हे जवाब देने कि अहमियत को हमने मेहसूस न किया है खत कि ताकद को हर पल समझकर लिया है
और गलत बात को रोकने के लिए उस खत का जवाब ही रोक लिया है अपने गुस्से को मन के अंदर ही किसी कोने मे रोक लिया है

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