Thursday 23 June 2016

कविता ७६०. कमजोर शुरुआत

                                           कमजोर शुरुआत
रेत के हर महल से कोई बात नजर आती है क्योंकि उसमे ही तो सपनों कि सौगाद नजर आती है जो आगे बढकर महलों को बनाने कि कोशिश होती है
उन्ही नन्हे हाथों से ही तो कल कि सुबह बनती है उनकी शुरुआत नई दिशाओं से होती है क्योंकि नन्ही हाथों से नये महलों को एहसास मिलते है
जीवन को समझ लेना एक अलग एहसास होता है नई शुरुआत मे अक्सर कागज और रेत का एहसास होता है क्योंकि कमजोर ही अक्सर शुरुआत होती है
कागज और रेत से ही तो अक्सर सपनों कि शुरुआत होती है जो ना समझे उन बातों को वही शुरुआत को कमजोरी समझ लेता है
कौन समझाए उन लोगों को हर मजबूत इमारत कि शुरुआत एक कमजोर कागज पर ही हमेशा होती है जो जीवन को अलग एहसास देती है
हर शुरुआत मे ही तो जीवन का मजबूत इरादा छुपा होता है उसे ना समझ पाये वह इन्सान अक्सर नादान होता है जो उसे परख नही पाता है
जीवन मे हमे मजबूत चीजों से पहले उनकी कमजोर शुरुआत करनी पडती है जिन्हे समझकर ही तो दुनिया आगे बढकर चलती है
क्योंकि कागज और रेत ही तो आगे बढने कि शुरुआत होती है जिसमे से ही तो दुनिया को नई ताकद मिल जाती है
पर कई बार कमजोर शुरुआत को दुनिया हार समझ लेती है अच्छा ही होता है अपना असली रंग दिखा देती है और वही असली शुरुआत होती है
जो जीवन को संभलना सीखा देती है कमजोर शुरुआत मे मजबूत वही बात बनाती है जिन्दगी मे मजबूत बनने कि जिद्द उसी दुनिया कि सोच का जवाब होती है

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