Sunday 10 April 2022

कविता. ४४०८. जज्बात कि सुबह अक्सर।

                          जज्बात कि सुबह अक्सर।

जज्बात कि सुबह अक्सर आशाओं के इशारे देकर चलती है अदाओं को लम्हों कि मुस्कान कोशिश दिलाती है एहसास सुनाकर चलती है।

जज्बात कि सुबह अक्सर आवाजों कि दास्तान देकर चलती है खयालों को उम्मीदों कि सोच इरादा दिलाती है अरमान सुनाकर चलती है।

जज्बात कि सुबह अक्सर किनारों के एहसास देकर चलती है कदमों को दास्तानों कि सुबह सौगात दिलाती है अफसाना सुनाकर चलती है।

जज्बात कि सुबह अक्सर नजारों के कोशिश देकर चलती है किनारों को अंदाजों कि राह अरमान दिलाती है तराना सुनाकर चलती है।

जज्बात कि सुबह अक्सर अंदाजों के इरादे देकर चलती है दिशाओं को उजालों कि परख पहचान दिलाती है अदा सुनाकर चलती है।

जज्बात कि सुबह अक्सर अरमानों कि सौगात देकर चलती है राहों को एहसासों कि तलाश खयाल दिलाती है कोशिश सुनाकर चलती है।

जज्बात कि सुबह अक्सर दास्तानों कि रोशनी देकर चलती है तरानों को उम्मीदों कि सरगम सहारा दिलाती है अंदाज सुनाकर चलती है।

जज्बात कि सुबह अक्सर उजालों कि परख देकर चलती है लम्हों को अरमानों कि धाराएं अफसाना दिलाती है इरादा सुनाकर चलती है।

जज्बात कि सुबह अक्सर किनारों कि कोशिश देकर चलती है बदलावों को इशारों कि सोच रोशनी दिलाती है अल्फाज सुनाकर चलती है।

जज्बात कि सुबह अक्सर अंदाजों कि मुस्कान देकर चलती है लहरों को अफसानों कि सौगात कोशिश दिलाती है आस सुनाकर चलती है।

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