Monday 4 April 2022

कविता. ४४०२. किसी सुबह के एहसास संग।

                        किसी सुबह के एहसास संग।

किसी सुबह के एहसास संग अरमानों कि कहानी चलती है जो अफसानों कि राह रुकी सी लगती थी वह उमंग कि उड़ानें भरती है।

किसी सुबह के एहसास संग आशाओं कि मुस्कान मिलती है जो खयालों कि अनजानी दास्तान रुकी सी लगती थी वह सपनों कि उड़ानें भरती है।

किसी सुबह के एहसास संग आवाजों कि धून निकलती है जो अरमानों कि उमंग रुकि सी लगती है वह तरानों कि उड़ानें भरती है।

किसी सुबह के एहसास संग अंदाजों कि रोशनी मिलती है जो जज्बातों कि सोच रुकी सी लगती थी वह अरमानों कि उड़ानें भरती है।

किसी सुबह के एहसास संग तरानों कि परख चलती है जो उजालों कि पहचान रुकी सी लगती है वह अंदाजों कि उड़ानें भरती है।

किसी सुबह के एहसास संग नजारों कि सोच चलती है जो आवाजों कि धून रुकी सी लगती है वह अल्फाजों कि उड़ानें भरती है।

किसी सुबह के एहसास संग कदमों कि आहट चलती है जो आशाओं कि मुस्कान रुकी सी लगती है वह लहरों कि उड़ानें भरती है।

किसी सुबह के एहसास संग सपनों कि सरगम चलती है जो खयालों कि उम्मीद रुकी सी लगती है वह अफसानों कि उड़ानें भरती है।

किसी सुबह के एहसास संग आशाओं कि सुबह चलती है जो अल्फाजों कि तलाश रुकी सी लगती है वह आवाजों कि उड़ानें भरती है।

किसी सुबह के एहसास संग अंदाजों कि मुस्कान चलती है जो जज्बातों कि लहर रुकी सी लगती है वह आशाओं कि उड़ानें भरती है।


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