Saturday, 23 April 2022

कविता. ४४२१. किनारों से आशाओं कि।

                             किनारों से आशाओं कि।

किनारों से आशाओं कि लहर इशारा दिलाती है सपनों को नजारों कि सुबह एहसास देकर जाती है अरमानों से मिलकर राहों को अल्फाजों कि सोच सुनाती है।

किनारों से आशाओं कि लम्हा सरगम दिलाती है जज्बातों को दिशाओं कि मुस्कान रोशनी देकर जाती है अंदाजों से जुड़कर दास्तानों को बदलावों कि सोच सुनाती है।

किनारों से आशाओं कि मुस्कान कोशिश दिलाती है राहों को दास्तानों कि अहमियत सौगात देकर जाती है अदाओं से समझकर तरानों को उम्मीदों कि सोच सुनाती है।

किनारों से आशाओं कि सुबह एहसास दिलाती है दिशाओं को उजालों कि परख पहचान देकर जाती है आवाजों से सुनाकर लहरों को अफसानों कि सोच सुनाती है।

किनारों से आशाओं कि आस अरमान दिलाती है लम्हों को कदमों कि आहट अफसाना देकर जाती है जज्बातों से मिलकर इशारों को लहरों कि सोच सुनाती है।

किनारों से आशाओं कि पुकार अल्फाज दिलाती है आवाजों को लम्हों कि रोशनी खयाल देकर जाती है बदलावों से जुड़कर कदमों को दास्तानों कि सोच सुनाती है।

किनारों से आशाओं कि रोशनी लहर दिलाती है अंदाजों को अफसानों कि उमंग पुकार देकर जाती है दास्तानों से सुनाकर खयालों को तरानों कि सोच सुनाती है।

किनारों से आशाओं कि आस दास्तान दिलाती है लहरों को अल्फाजों कि सरगम परख देकर जाती है इशारों से मिलकर आवाजों को लम्हों कि सोच सुनाती है।

किनारों से आशाओं कि मुस्कान तराना दिलाती है सपनों को नजारों कि तलाश सौगात देकर जाती है अदाओं से समझकर अंदाजों को इशारों कि सोच सुनाती है।

किनारों से आशाओं कि लहर सपना दिलाती है कदमों को दास्तानों कि सुबह एहसास देकर जाती है जज्बातों से सुनाकर खयालों को उम्मीदों कि सोच सुनाती है।

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