Saturday 16 April 2022

कविता. ४४१४. कदमों को दास्तानों कि।

                            कदमों को दास्तानों कि ।   

कदमों को दास्तानों कि समझ अक्सर सपना सुनाती है इशारों को अरमानों कि आहट अफसाना दिलाती है लम्हों को किनारों कि सुबह से एहसास सुनाती है।

कदमों को दास्तानों कि सुबह अक्सर कोशिश सुनाती है दिशाओं को उजालों कि परख पहचान दिलाती है सपनों को नजारों कि सरगम से एहसास सुनाती है।

कदमों को दास्तानों कि आस अक्सर खयाल सुनाती है राहों को अल्फाजों कि सोच इरादा दिलाती है बदलावों को उमंग कि तलाश से अफसाना सुनाती है।

कदमों को दास्तानों कि परख अक्सर पहचान सुनाती है नजारों को आवाजों कि सुबह मुस्कान दिलाती है आशाओं को अदाओं कि समझ से अफसाना सुनाती है।

कदमों को दास्तानों कि सोच अक्सर इरादा सुनाती है लम्हों को अंदाजों कि राह बदलाव दिलाती है दास्तानों को नजारों कि पुकार से अफसाना सुनाती है।

कदमों को दास्तानों कि आहट अक्सर लहर सुनाती है जज्बातों को दिशाओं कि उमंग उम्मीद दिलाती है लहरों को अंदाजों कि मुस्कान से अफसाना सुनाती है।

कदमों को दास्तानों कि सरगम अक्सर आस सुनाती है इरादों को अंदाजों कि सुबह आवाज दिलाती है राहों को किनारों कि पुकार से अफसाना सुनाती है।

कदमों को दास्तानों कि पुकार अक्सर पहचान सुनाती है दिशाओं को उजालों कि परख अहमियत दिलाती है इशारों को तरानों कि राह से अफसाना सुनाती है। 

कदमों को दास्तानों कि सौगात अक्सर नजारा सुनाती है आशाओं को अदाओं कि समझ पहचान दिलाती है किनारों को आवाजों कि धून से अफसाना सुनाती है।

कदमों को दास्तानों कि लहर अक्सर अल्फाज सुनाती है इशारों को अरमानों कि धाराएं बदलाव दिलाती है सपनों को खयालों कि उम्मीद से अफसाना सुनाती है।

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