Tuesday 5 April 2022

कविता. ४४०३. हर सपने को कोई दिशा।

                          हर सपने को कोई दिशा।

हर सपने को कोई दिशा सहारा देती है आशाओं को अरमानों का किनारा देती है लहर संग जुड़कर कोशिश अफसाना दिलाती है।

हर सपने को कोई दिशा अरमान देती है तरानों को अंदाजों का इशारा देती है नजारों संग जुड़कर सरगम अफसाना दिलाती है।

हर सपने को कोई दिशा जज्बात देती है दास्तानों को बदलावों का तराना देती है आवाजों संग जुड़कर तलाश अफसाना दिलाती है।

हर सपने को कोई दिशा मुस्कान देती है अदाओं को लम्हों का इरादा देती है अरमानों संग जुड़कर पहचान अफसाना दिलाती है।

हर सपने को कोई दिशा परख देती है कदमों को इशारों का उजाला देती है अंदाजों संग जुड़कर उमंग अफसाना दिलाती है।

हर सपने को कोई दिशा लहर देती है जज्बातों को तरानों का खयाल देती है इरादों संग जुड़कर रोशनी अफसाना दिलाती है।

हर सपने को कोई दिशा आवाज देती है अदाओं को दास्तानों का इशारा देती है तरानों संग जुड़कर उम्मीद अफसाना दिलाती है।

हर सपने को कोई दिशा कोशिश देती है आशाओं को अदाओं का किनारा देती है नजारों संग जुड़कर लहर अफसाना दिलाती है।

हर सपने को कोई दिशा तलाश देती है नजारों को एहसासों का अल्फाज देती है इशारों संग जुड़कर उमंग अफसाना दिलाती है।

हर सपने को कोई दिशा अरमान देती है आवाजों को लम्हों का इरादा देती है जज्बातों संग जुड़कर कोशिश अफसाना दिलाती है।

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