Monday, 11 April 2022

कविता. ४४०९. आस जो पलकों कि।

                               आस जो पलकों कि।

आस जो पलकों कि सुबह देकर जाती है जज्बातों से अफसानों कि सौगात कोशिश दिलाती है राहों को एहसासों कि तलाश इशारा देती है।

आस जो पलकों कि तलाश देकर जाती है अदाओं से नजारों कि अरमान दास्तान दिलाती है तरानों को अंदाजों कि रोशनी इशारा देती है।

आस जो पलकों कि अरमान देकर जाती है आशाओं से जज्बातों कि लहर सहारा दिलाती है दिशाओं को उजालों कि समझ इशारा देती है।

आस जो पलकों कि सौगात देकर जाती है कदमों से अल्फाजों कि सोच इरादा दिलाती है बदलावों को अंदाजों कि मुस्कान इशारा देती है।

आस जो पलकों कि कोशिश देकर जाती है किनारों से खयालों कि उम्मीद एहसास दिलाती है आवाजों को लम्हों कि सौगात इशारा देती है।

आस जो पलकों कि सरगम देकर जाती है तरानों से दिशाओं कि सुबह अफसाना दिलाती है दास्तानों को नजारों कि समझ इशारा देती है।

आस जो पलकों कि सोच देकर जाती है राहों से अरमानों कि परख पहचान दिलाती है दिशाओं को उजालों कि सौगात इशारा देती है।

आस जो पलकों कि सुबह देकर जाती है आशाओं से एहसासों कि तलाश सपना दिलाती है सपनों को जज्बातों कि लहर इशारा देती है।

आस जो पलकों कि पुकार देकर जाती है अंदाजों से खयालों कि उम्मीद उजाला दिलाती है नजारों को एहसासों कि सुबह इशारा देती है।

आस जो पलकों कि मुस्कान देकर जाती है आवाजों से उम्मीदों कि आहट अफसाना दिलाती है बदलावों को उमंग कि तलाश इशारा देती है।

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