Sunday 17 April 2022

कविता. ४४१५. सपना एक कहता है।

                                सपना एक कहता है।

सपना एक कहता है उम्मीद का दामन थाम के चल जो आज कि मुस्कान है उसे मेहसूस करता हुआ हर पल के संग हर उमंग के सहारे हर राह पर चल।

सपना एक कहता है उमंग का इशारा थाम के चल जो आज कि पुकार है उसे पहचान दिलाता हुआ हर सुबह के संग हर सौगात के सहारे हर राह पर चल।

सपना एक कहता है कोशिश का किनारा थाम के चल जो आज कि परख है उसे खयाल देता हुआ हर सोच के संग हर रोशनी के सहारे हर राह पर चल।

सपना एक कहता है दास्तान का सरगम थाम के चल जो आज कि पहचान है उसे नजारा देता हुआ हर बदलाव के संग हर पुकार के सहारे हर राह पर चल।

सपना एक कहता है तलाश का एहसास थाम के चल जो आज कि सुबह है उसे पुकार देता हुआ हर अरमान के संग हर कोशिश के सहारे हर राह पर चल।

सपना एक कहता है आस का अरमान थाम के चल जो आज कि दुनिया है उसे पहचान देता हुआ हर अल्फाज के संग हर सरगम के सहारे हर राह पर चल।

सपना एक कहता है उजालों का तराना थाम के चल जो आज कि आहट है उसे अरमान देता हुआ हर सोच के संग हर एहसास के सहारे हर राह पर चल।

सपना एक कहता है जज्बातों का किनारा थाम के चल जो आज कि दिशा है उसे पहचान देता हुआ हर आस के संग हर उमंग के सहारे हर राह पर चल।

सपना एक कहता है इशारों का तराना थाम के चल जो आज कि दुनिया है उसे कोशिश देता हुआ हर पल के संग हर अल्फाज के सहारे हर राह पर चल।

सपना एक कहता है अंदाजों का सुबह थाम के चल जो आज कि सरगम है उसे अहमियत देता हुआ हर सौगात के संग हर कोशिश के सहारे हर राह पर चल।

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