Friday 1 April 2022

कविता. ४३९९. खयाल कोई अलगसा जब।

                             खयाल कोई अलगसा जब।

खयाल कोई अलगसा जब जीवन मे आता है आशाओं को लम्हों का इरादा दिशाएं देता जाता है एहसासों को कदमों कि आहट सुनाकर आगे बढता है।

खयाल कोई अलगसा जब जज्बात संग चलता है आवाजों को बदलावों का किनारा लहर देता जाता है दास्तानों को नजारों कि सुबह सुनाकर आगे बढता है।

खयाल कोई अलगसा जब सरगम संग सुनाता है दिशाओं को उजालों का तराना राह देता जाता है अरमानों को लम्हों कि रोशनी सुनाकर आगे बढता है।

खयाल कोई अलगसा जब इशारा लाता है अरमानों को उम्मीदों का अफसाना लम्हा देता जाता है लहरों को अल्फाजों कि सौगात सुनाकर आगे बढता है।

खयाल कोई अलगसा जब लहर संग आता है अंदाजों को इशारों का तराना दास्तान देता जाता है बदलावों को उमंग कि तलाश सुनाकर आगे बढता है।

खयाल कोई अलगसा जब पुकार मे लाता है आशाओं को अदाओं का एहसास जज्बात देता जाता है इशारों को तरानों कि रोशनी सुनाकर आगे बढता है।

खयाल कोई अलगसा जब पहचान संग सुनाता है तरानों को उमंग का इरादा सरगम देता जाता है किनारों को आवाजों कि धून सुनाकर आगे बढता है।

खयाल कोई अलगसा जब समझ से लाता है आवाजों को बदलावों का सपना कोशिश देता जाता है अदाओं को लम्हों कि सुबह सुनाकर आगे बढता है।

खयाल कोई अलगसा जब सौगात संग आता है लहरों को अफसानों का इशारा तलाश देता जाता है कदमों को दास्तानों कि सोच सुनाकर आगे बढता है।

खयाल कोई अलगसा जब रोशनी से आता है इशारों को तरानों का अल्फाज सहारा देता जाता है दिशाओं को उजालों कि समझ सुनाकर आगे बढता है।

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