Thursday 28 April 2022

कविता. ४४२६. सुबह को अल्फाजों कि।

                         सुबह को अल्फाजों कि।

सुबह को अल्फाजों कि धाराएं अफसाना देती है किनारों को आशाओं कि मुस्कान कोशिश दिलाती है दास्तानों से खयालों कि उम्मीद आवाज देकर चलती है।

सुबह को अल्फाजों कि अदाएं तलाश देती है कदमों को अफसानों कि धून एहसास दिलाती है लहरों से दिशाओं कि सरगम आवाज देकर चलती है।

सुबह को अल्फाजों कि परख पहचान देती है नजारों को एहसासों कि तलाश किनारा दिलाती है अदाओं से खयालों कि उमंग आवाज देकर चलती है।

सुबह को अल्फाजों कि पुकार अल्फाज देती है कोशिश को नजारों कि आस दास्तान दिलाती है लम्हों से जज्बातों कि सोच आवाज देकर चलती है।

सुबह को अल्फाजों कि आस खयाल देती है बदलावों को इशारों कि सौगात अल्फाज दिलाती है नजारों से अफसानों कि पुकार आवाज देकर चलती है।

सुबह को अल्फाजों कि सरगम कोशिश देती है तरानों को अंदाजों कि पहचान तराना दिलाती है सपनों से अदाओं कि मुस्कान आवाज देकर चलती है।

सुबह को अल्फाजों कि दिशाएं सपना देती है उम्मीदों को आशाओं कि परख जज्बात दिलाती है राहों से अंदाजों कि सोच आवाज देकर चलती है।

सुबह को अल्फाजों कि रोशनी खयाल देती है नजारों को अल्फाजों कि सोच इरादा दिलाती है दिशाओं से कदमों कि पहचान आवाज देकर चलती है।

सुबह को अल्फाजों कि लहर किनारा देती है दास्तानों को बदलावों कि उमंग उजाला दिलाती है लम्हों से कोशिश कि परख आवाज देकर चलती है।

सुबह को अल्फाजों कि पुकार पहचान देती है अंदाजों को इरादों कि तलाश अहमियत दिलाती है लहरों से सपनों कि आहट आवाज देकर चलती है।

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