Tuesday 19 April 2022

कविता. ४४१७. किनारों से आशाओं कि।

                               किनारों से आशाओं कि।

किनारों से आशाओं कि लहर अरमान जगाती है जज्बातों कि पुकार मुस्कान संग एहसास दिलाती है सपनों को नजारों कि तलाश इशारा देती है।

किनारों से आशाओं कि सौगात सुबह जगाती है कदमों कि सरगम दास्तान संग नजारा दिलाती है बदलावों को लम्हों कि रोशनी इशारा देती है।

किनारों से आशाओं कि कोशिश एहसास जगाती है उजालों कि समझ खयाल संग उम्मीद दिलाती है आवाजों को कदमों कि आहट इशारा देती है।

किनारों से आशाओं कि दास्तान अल्फाज जगाती है लहरों कि पुकार सौगात संग जज्बात दिलाती है दिशाओं को उजालों कि परख इशारा देती है।

किनारों से आशाओं कि सरगम सपना जगाती है खयालों कि उमंग अरमान संग परख दिलाती है लहरों को अफसानों कि सोच इशारा देती है।

किनारों से आशाओं कि मुस्कान रोशनी जगाती है जज्बातों कि लहर आस संग रोशनी दिलाती है सपनों को नजारों कि सुबह इशारा देती है।

किनारों से आशाओं कि राह अहमियत जगाती है अंदाजों कि राह जज्बात संग एहसास दिलाती है खयालों को उम्मीदों कि धून इशारा देती है।

किनारों से आशाओं कि तलाश तराना जगाती है नजारों कि सुबह अफसाने संग उम्मीद दिलाती है बदलावों को आवाजों कि सौगात इशारा देती है।

किनारों से आशाओं कि सरगम सपना जगाती है कदमों कि आहट खयाल संग सौगात दिलाती है लम्हों को अरमानों कि पुकार इशारा देती है।

किनारों से आशाओं कि सोच इरादा जगाती है जज्बातों कि लहर मुस्कान संग दास्तान दिलाती है नजारों को अदाओं कि समझ इशारा देती है।

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