Friday 15 April 2022

कविता. ४४१३. कोई आवाज जब।

                              कोई आवाज जब।

कोई आवाज जब दिशाओं से सुनाई पडती है आशाओं कि नयी कहानी बनती है एहसासों से जुड़कर कोशिश पहचान कि राहे देकर चलती है।

कोई आवाज जब अंदाजों से सुनाई पडती है अदाओं कि नयी दास्तान बनती है अफसानों से जुड़कर आहट तरानों कि आशाएं देकर चलती है।

कोई आवाज जब रोशनी से सुनाई पडती है लहरों कि नयी कोशिश बनती है अल्फाजों से जुड़कर राह अंदाजों कि सरगम देकर चलती है।

कोई आवाज जब कोशिश से सुनाई पडती है कदमों कि नयी नजारा बनती है अदाओं से जुड़कर पहचान खयालों कि उम्मीद देकर चलती है।

कोई आवाज जब उजालों से सुनाई पडती है किनारों कि नयी राह बनती है जज्बातों से जुड़कर सौगात दिशाओं कि परख देकर चलती है।

कोई आवाज जब उम्मीदों से सुनाई पडती है दास्तानों कि नयी पुकार बनती है अफसानों से जुड़कर कोशिश अंदाजों कि मुस्कान देकर चलती है।

कोई आवाज जब तरानों से सुनाई पडती है उम्मीदों कि नयी कहानी बनती है अदाओं से जुड़कर नजार अरमानों कि सुबह देकर चलती है।

कोई आवाज जब इशारों से सुनाई पडती है उजालों कि नयी निशानी बनती है अल्फाजों से जुड़कर परख दास्तानों कि सोच देकर चलती है।

कोई आवाज जब लम्हों से सुनाई पडती है खयालों कि नयी कोशिश बनती है नजारों से जुड़कर तलाश अल्फाजों कि रोशनी देकर चलती है।

कोई आवाज जब लहरों से सुनाई पडती है अदाओं कि नयी दास्तान बनती है जज्बातों से जुड़कर पुकार अरमानों कि सौगात देकर चलती है।

No comments:

Post a Comment

कविता. ५१६५. उम्मीदों को किनारों की।

                               उम्मीदों को किनारों की। उम्मीदों को किनारों की सौगात इरादा देती है आवाजों को अदाओं की पुकार पहचान दिलाती है द...