Wednesday 27 April 2022

कविता. ४४२५. उमंग को किनारों से।

                                उमंग को किनारों से।

उमंग को किनारों से जुड़कर आस दिलाती है सपनों से अदाओं कि कोशिश अफसाना देती है लहरों को अल्फाजों कि सोच सपना देकर चलती है।

उमंग को किनारों से समझकर अदा दिलाती है कदमों से राहों कि तलाश अरमान देती है जज्बातों को दिशाओं कि पहचान मुस्कान देकर चलती है।

उमंग को किनारों से परखकर खयाल दिलाती है लम्हों से कोशिश कि पुकार आस देती है बदलावों को इशारों कि सुबह अरमान देकर चलती है।

उमंग को किनारों से मिलकर इशारा दिलाती है अंदाजों से रोशनी कि समझ सौगात देती है तरानों को खयालों कि सरगम आवाज देकर चलती है।

उमंग को किनारों से जुड़कर मुस्कान दिलाती है दिशाओं से इरादों कि परख पहचान देती है उम्मीदों को अदाओं कि लहर कोशिश देकर चलती है।

उमंग को किनारों से समझकर एहसास दिलाती है लम्हों से आवाजों कि धून अल्फाज देती है कदमों को आशाओं कि जज्बात देकर चलती है।

उमंग को किनारों से परखकर सौगात दिलाती है अंदाजों से अरमानों कि सुबह कोशिश देती है तरानों को अदाओं कि सरगम देकर चलती है।

उमंग को किनारों से मिलकर पुकार दिलाती है तरानों से दिशाओं कि समझ सौगात देती है दास्तानों को बदलावों कि सोच देकर चलती है।

उमंग को किनारों से जुड़कर कोशिश दिलाती है लम्हों से दास्तानों कि सोच इरादा देती है नजारों को एहसासों कि परख देकर चलती है।

उमंग को किनारों से समझकर पहचान दिलाती है सपनों से नजारों कि सौगात खयाल देती है कदमों को दास्तानों कि अफसाना देकर चलती है।

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