Monday 11 March 2024

कविता. ५१०८. आवाज कोई निराली।

                              आवाज कोई निराली।

आवाज कोई निराली पुकार सुनाकर चलती है अंदाजों को लम्हों की आहट इशारे देती रहती है किनारों को अल्फाजों की मुस्कान दिलाती है।

आवाज कोई निराली पहचान सुनाकर चलती है तरानों को उम्मीदों की कहानी लहरे देती रहती है खयालों को जज्बातों की मुस्कान दिलाती है।

आवाज कोई निराली आस सुनाकर चलती है उजालों को सपनों की कोशिश तराने देती रहती है आशाओं को बदलावों की मुस्कान दिलाती है।

आवाज कोई निराली सुबह सुनाकर चलती है राहों को अरमानों की अल्फाज दास्तानें देती रहती है अफसानों को दिशाओं की मुस्कान दिलाती है।

आवाज कोई निराली सरगम सुनाकर चलती है लहरों को इशारों की आस लम्हे देती रहती है नजारों को उम्मीदों की मुस्कान दिलाती है।

आवाज कोई निराली सौगात सुनाकर चलती है नजारों को अदाओं की रोशनी अफसाने देती रहती है कदमों को राहों की मुस्कान दिलाती है।

आवाज कोई निराली अरमान सुनाकर चलती है सपनों को एहसासों की आहट नजारे देती रहती है अंदाजों को उजालों की मुस्कान दिलाती है।

आवाज कोई निराली दास्तान सुनाकर चलती है खयालों को उम्मीदों की तलाश किनारे देती रहती है इरादों को सपनों की मुस्कान दिलाती है।

आवाज कोई निराली तलाश सुनाकर चलती है जज्बातों को राहों की कहानी इरादे देती रहती है अल्फाजों को तरानों की मुस्कान दिलाती है।

आवाज कोई निराली उम्मीद सुनाकर चलती है एहसासों को सपनों की आस उजाले देती रहती है आशाओं को दिशाओं की मुस्कान दिलाती है।

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