Sunday, 24 March 2024

कविता. ५१२१. उमंग से जुडकर।

                                   उमंग से जुडकर।

उमंग से जुडकर आशाओं की लहर इशारा देकर जाती है कदमों को उजालों की समझ संग अरमान जगाती है सपनों को एहसासों की पुकार सुनाती है।

उमंग से जुडकर अंदाजों की कहानी आस देकर जाती है किनारों को अल्फाजों की तलाश संग आवाज जगाती है नजारों को खयालों की पुकार सुनाती है।

उमंग से जुडकर सपनों की सोच सपना देकर जाती है आशाओं को बदलावों की मुस्कान संग आहट जगाती है दिशाओं को इरादों की पुकार सुनाती है।

उमंग से जुडकर लहरों की सौगात कोशिश देकर जाती है अंदाजों को इरादों की आस संग जज्बात जगाती है राहों को अरमानों की पुकार सुनाती है।

उमंग को जुडकर लम्हों की आहट एहसास देकर जाती है अफसानों को सपनों की सुबह संग पहचान जगाती है किनारों को अल्फाजों की पुकार सुनाती है।

उमंग को जुडकर नजारों की रोशनी अल्फाज देकर जाती है अरमानों को दिशाओं की लहर संग परख जगाती है उजालों को बदलावों की पुकार सुनाती है।

उमंग को जुडकर जज्बातों की आस खयाल देकर जाती है नजारों को अंदाजों की सौगात संग आवाज जगाती है अदाओं को लम्हों की पुकार सुनाती है।

उमंग को जुडकर दास्तानों की अदा दास्तान देकर जाती है राहों को एहसासों की कहानी संग अहमियत जगाती है राहों को सपनों की पुकार सुनाती है।

उमंग को जुडकर उम्मीदों की कोशिश तराना देकर जाती है उजालों को बदलावों की अदा संग सरगम जगाती है किनारों को दास्तानों की पुकार सुनाती है।

उमंग को जुडकर राहों की पहचान सहारा देकर जाती है आशाओं को इशारों की समझ संग अल्फाज जगाती है उम्मीदों को दिशाओं की पुकार सुनाती है।


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