Tuesday, 10 November 2015

कविता ३०८. किताब को समज लेना

                                                          किताब को समज लेना
सिर्फ किताब को पढने से काम नही बनता जीवन तब तक नही सुलझता जब तक इन्सान उसे अपना नही लेता जीवन को समज लेना काफी नही होता है
जीवन कि किताब को तो जीना होता है उसके हर पन्ने को परख लेना होता है उनके मदत से चलना जरुरी होता है हर पन्ने को समज लेना अहम होता है
पर हर बार किताब के अंदर अलग ख़याल जो लगते है उन्हें समज लेना हर बार रोशनी देता है क्योंकि रोशनी तो उन खयालों के अंदर हर बार होती है
किताब के अंदर अलग ख़याल हर बार जीवन को मतलब दे जाते है किताब के अंदर अलग ख़यालो का आना जाना होता है
जीवन के हर सोच में ही तो जीवन का जिन्दा रहना होता है किताब के पन्ने को पढ़ने से ज्यादा किताब को जीना जरुरी होता है
जीवन के हर मोड़ पर किताब को लोग पढ़ते है सिर्फ अपनी जरूरत के लिए उन खयालों को अपने जरूरत से ज्यादा समज लेना जरुरी होता है
रोशनी तो किताबों के अंदर नये ख़याल को समजा देती है उन्हें परख लेना जरुरी होता है जीवन के अंदर हर सही सोच को समज लेना होता है
किताब के पन्नों में कुछ तो लिखा होता है समज लेना जरूर होता है किताब के अंदर लिखी चीजों का परख लेना जरुरी होता है
किताब में लिखी चीजों को आजमाना जीवन में हर बार अहम और जरुरी होता है किताब जो समजा लेती है उसे सिर्फ पढ़ना नहीं समज लेना जरुरी होता है
किताब में जीवन को समज लेना हर बार जरुरी लगता है वही जीवन को नई सोच और नई साँसे हर बार देता है किताब को पढ़ना नहीं समज लेना जरुरी होता है 

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