Wednesday 25 November 2015

कविता ३३९. ताने

                                                                           ताने
हर बात को सही करने कि कोशिश मे इन्सान कई बार ग़लत कर जाता है कई बार महल बनाने कि कोशिश मे अपना मिट्टी का घर तोड़ जाता है
जीवन मे हर बार नई चीज़ें तो आती है पर उनके आगे पीछे क्या है यह सोचना ज़रूरी होता है महल से ज़्यादा मिट्टी के घर को समज लेना हर बार ज़रूरी होता है
क्योंकि दुनिया मे मिट्टी के घर कई है और महल का होना थोड़ा मुश्किलसा लगता है महल को समज लेते है तो जरा मुश्किल है पर उस से भी ज़्यादा मिट्टी का घर अहम होता है
महल को समजे तो वह ख़ास है पर जो अक्सर दिखता है उस घर को समज लेना जीवन मे हर बार अहम ही लगता है मिट्टी के घर से ज़्यादा महल अगर दुनिया मे होते तो उन्हें समज लेना अहम होता
हर कदम पर महल से ज्यादा मिट्टी के घरों को संभाल लेना दुनिया मे अहम होता है महल से ज़्यादा मिट्टी का बसेरा ही दुनिया का मज़बूत सच हर बार होता है
महलों कि शान मे कुछ लोग इतने जुड़ जाते है कि उन्हें महलों के सिवा कुछ नहीं दिखता है वह सिर्फ महल को देखते है उनको मिट्टी का घर नहीं दिखता है
महल के अंदर हर बात अलग एहसास अक्सर है दिखता पर मन के अंदर हर बार महल की उम्मीद का जीवन में जिन्दा रहना होता है
मिट्टी के घर में अलग सोच बसेरा हर बार जीवन में होता है महल के अंदर जीवन में अलग एहसास का हमेशा जिन्दा रहना होता है
महल में सुंदरता है जिसे पाने की चाहत में ही लोगों का अक्सर महल के बारे में सोचना शुरू रहता है मिट्टी का घर भुलाने में ही उनका जीवन बीत जाता है
पर सच समजो तो वह तारीफ नहीं करते महलों की उन्हें भी ताने कसने में बीत जाता है उनका जीना फिर भी मिट्टी के घर से कहाँ जुड़ा होता है उनका हँसना और रोना सिर्फ तानो में होता है 

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