Sunday, 29 November 2015

कविता ३४७. हर लम्हा

                                          हर लम्हा
हर बार हर लम्हा जीवन मे रंग नया दिखाता है कुछ लम्हों को तो हम पकड़ लेते है पर कुछ लम्हों को खो देने का अफ़सोस तो हर पल मन को चोट दे जाता है
हर लम्हें के साथ जीवन एहसास नया लाता है पर हम चाहते है हर लम्हा हमारे पास हो वह जीवन को एहसास नया दे जाता है लम्हों से ही तो जीवन बनता है
पर कभी कभी कोई लम्हा भी हमसे खो जाता है लम्हें को परख ले तो वह जीवन मे आवाज़ अलग ही लाता है हर बारी हर लम्हें मे जीवन साँस नई दे जाता है
लम्हों को समज ले तो उनमें जीवन अपनी साँसें पाता है जब लम्हों से जीवन बनता हो तो एक लम्हा भी हीरे सा नज़र आता है लम्हें के अंदर ही जीवन का मतलब नज़र आता है
लम्हा तो इन्सान को वह सोच दे जाता है जिसके अंदर जीवन का हर हिस्सा साँसें बनकर जिन्दा अक्सर रहता है लम्हा तो जीवन के हर पल से बनता नज़र आता है
लम्हा जीवन को हर बार ताकद दे जाता है लम्हें मे हर कदम पर जीवन की सोच अलग नज़र आती है जो हर बारी जीवन को  अलग शुरुआत दे जाती है
लम्हों के अंदर ही जीवन कि सोच नई किरण बन के नज़र आती है लम्हा तो जीवन को अलग सोच दे जाता है जिसे समज लेना हर बार अलग मज़ा दे जाता है
लम्हें जो जीवन को मतलब नया दे जाते है हर लम्हें मे जीवन का अलग सार पाते है जीवन का जो लम्हा हम खो देते है उस लम्हें का जीवन पर अलग असर हम महसूस कर जाते है
लम्हो के अंदर अलग सोच जो जीवन को उम्मीदें दे जाती है वही तो अक्सर जीवन का एहसास बन के जीवन मे नज़र आती है लम्हा ही वह चीज़ है जो उम्मीदें दे जाता है
पर खोया लम्हा हम क्यूँ ढूँढ़ते है हम जब खोए लम्हे कि जगह जीवन मे नया लम्हा ले पाते है खोई हुई चीजों से ज़्यादा जीवन मे नई चीज़ें हर बार अहम नज़र आती है जो रोशनी दे जाती है

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