Monday 30 November 2015

कविता ३४८. फर्क़ न पडनेवाले मोड़

                                     फर्क़ न पडनेवाले मोड़
मोड़ को समज लेते हो तो सोच अलग सी लाते हो अगर मोड़ को छोड़कर जाते हो तो भी जीवन को फर्क़ नहीं पड़ता है कुछ मोड़ तो जीवन मे मायने रखते है
पर कुछ मोड़ जीवन मे कहाँ कुछ फर्क़ करते है हर मोड़ मे अलग एहसास हर बार जीवन को कुछ मतलब देते है जो जीवन को हर बार छू कर बदल देते है
पर कुछ मोड़ तो बिन मतलब के ही जीवन मे होते है वही जीवन से अलग असर कर लेते है जीवन का एहसास बदल देते है पर जाने क्यूँ जिस मोड़ को मतलब नहीं है
उसी मोड़ पर लोग कई बार सोचते रहते है जिसमें वह कई ख़ुशियाँ पा सकते है उन्हें छोड़कर उस मोड़ पर रुक से जाते है जिस पर वह अपनी दुनिया का कोई हिस्सा नहीं पाते है
फिर भी कई बार जीवन को अलग असर दे जाते है क्योंकि हम जीवन मे जब उनके बारे मे सोचते है हम कुछ नहीं कर पाते है तो बिना बजह ही वह क़िस्से जीवन का हिस्सा बन जाते है
मोड़ जो हमारे जीवन को किसी मोड़ पर रोक पाते है वह जीवन का कुछ ना कुछ तो अलग बना जाते है जीवन तो उन मोड़ का किस्सा होता है जो जीवन को बदल जाते है
जीवन को कई किनारे हमेशा सहारा दे जाते है उम्मीदों का कारवा आगे बढाते है जीवन के अंदर ही अलग अलग साँसें वह हमे हमेशा दे जाते है पर कभी कभी ऐसा भी होता है
कुछ बिन जरूरी मोड़ भी जीवन पर कुछ तो असर कर जाते है क्योंकि कि उनमें ही हम अपने जीवन का वक्त गवाते है तो उसी पल वह जरूरी होता है
जिस मोड़ पर हमारा मन रुक सा जाता है उस मोड़ का ही जीवन पर असल असर होता है क्योंकि जो मन मे रुकता है वही तो जीवन पर असर कर जाता है
वह मोड़ जो जीवन को ख़ुशियाँ और गम दे जाता है वह मन से नई सुबह तभी लाते है जब हम उन्हें मन से चाहते है तो कभी कभी फर्क़ ना करनेवाले मोड़ भी भला बुरा असर कर जाते है

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