Thursday, 5 November 2015

कविता २९८. पत्तों पर लिखा राज

                                           पत्तों पर लिखा राज
पेडों के पत्ते भी कभी कभी जीवन मे बात सुना देते है उन्हे कहा समज पाते है हम जो हमारी बाते भी चुपके से बता के जाते है हर पत्ते के उप्पर हम अलग कहानी बताते है
जो पत्ते पर लिखी जाये वह अलग निशानी दिखाते है जब जब हम पढते है पत्तों पर वह सोच लिखी है जिसे हम परख लेना चाहते है उस सोच के अंदर हम अलग उम्मीद पाते है
पत्तों पर हम तो इस उम्मीद से लिखते है  कि पत्ते वह सोच हमेशा छुपा कर जाते है पर सच कहे तो पत्ते नही चेहरे सच बता के जाते है जिन्हे मन से हम छुपा लेना चाहते है वह बात बताना चाहते है
पत्तो पे लिखी हर एक कहानी को हम मन से परख लेना चाहते है जिसे चेहरे से समज लेते है हर पल उसे जाने क्यूँ अनदेखा करना चाहते है आसानी से लोग चेहरे को समज लेते है
पत्ते को कहा लोग पढते है वह तो अक्सर हमारे चेहरे को देख कर बात समज जाते है वह लब्ज जो जीवन को मतलब दे जाते है उन्हे समज लेना लोग चेहरे से ही परख लेते है
पत्तों के अंदर कुछ तो राज छुपा होता है उस राज को चेहरे पर समज लेना ही बडा आसान होता है पर जाने क्यूँ जीवन को हर बार समज लेना चेहरे से आसान होता है
तो क्यूँ लगता है हमे पत्ते पर लिख देने से राज पत्ते संग छुप जाते है बेहतर तो तब होता है जब हम राज को अपना बना देते है जीवन को आसानी से हर पल अपनाते है
पर जाने क्यूँ हम जीवन यह सोच रख लेते है कि हम पत्तों पर लिखकर जीवन कि बात आसानी से छुपा जाते है पत्ते नही जीवन मे चेहरे ही सबकुछ बताकर जाते है
पत्तों को हवा भी उडा लेती है पर हम अपने चेहरे को कहा छुपा पाते है चेहरे तो हर बार जीवन को अलग मतलब दे जाते है उन चेहरों के अंदर ही हम दुनिया पा जाते है
पत्तों से ज्यादा चेहरे ही जीवन को मतलब दे जाते है हम कभी याद रखते है यह बात कभी भूल जाते है पर लोग चुपचाप चेहरे को पढ कर हँस कर चले जाते है क्यूँ सारे राज तो वह आसानी से पढ लेते है

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