Wednesday, 18 November 2015

कविता ३२४. कोयल कि मधुर आवाज़

                                           कोयल कि मधुर आवाज़
कुछ असर तो अलगसा हम पर हो जाता है जब सुबह कोयल कि मधुर आवाज़ उठा लेती है गाडींयों कि रफ्तार भी उसे रोक नहीं पाती है जीवन कि गाड़ी जब आगे बढ़ जाती है
उस कोयल कि आवाज़ ही उसे रोक पाती है कितनी मधुर होती है जीवन मे अमृत के रस का आभास दिलाती है हर स्वर मे उसके मंदिर कि घंटा सुनाई पड़ती है
बस उस मे ही ईश्वर कि मूरत दिख जाती है मन पूछता है फिर हमको क्यूँ उसकी मूरत छूती जाती है जब सिर्फ़ कोयल के मधुर आवाज़ से वह जिन्दा हो पाती है
बार बार उस कोयल को सुनने कि चाह सताती है उसे छूनेकी चाहत मे हम खिड़की तक दौड जाते है ना कोई परवाह होती है बस दिल दौड़ के ले जाता है
कोयल तो अपना अलग संगीत सुनाती है जो जीवन को परख लेने का मतलब दे जाते है मासूमसी उस आवाज़ को हर पल समज लेना कि चाहत हर बार दिल को होती है
जो अपने मधुरता कि एक अलग रोशनी देती है वह कोयल जीवन मे नई सोच देती है जो जीवन कि अच्छाई और सच्चाई को हर बार जिन्दा कर जाती है
सबकुछ भूलकर कोयल को सुनने कि सुबह कि वह चाहत हमे ख़ुशियाँ देती है कोयल के मासूम आवाज़ मे हमारी दुनिया देती है कोयल की मधुर आवाज़ मे जीवन वह हर बार दे जाती है
पेड़ के पास नहीं जा सकते है पर उन परिंदों को आवाज़ से ही पकड़ लेते है उन मधुर साज़ कि ताकद से दुनिया को हर बार परख लेते है परिंदों को समज लेने से ही हम जीवन को समजते है
वह आवाज़ जो जीवन को नया एहसास देती है मधुर आवाज़ जो जीवन को अलग समज का एहसास देती है वही तो उस कोयल कि पुकार होती है
कोयल के आवाज़ मे मधुरता कि जन्नत धरती पर मिलती है उसे सिर्फ़ सुन ले तो ही ख़ुशियाँ मिलती है क्योंकि कोयल कि मधुर आवाज़ ही हमारी सुबह बदल देती है

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