Tuesday 24 November 2015

कविता ३३७. आँसू को पोछना

                                                           आँसू  को पोछना
जब जब हमने जस्बाद को समजा दिल की हर आवाज को अलग तरीके से समजा उस आवाज में ही हमने अपने एहसास को समजा चाहे लोग जीत को कितना ही चाहे हमने खुद को सच्चाई के लिए हार को गले लगाते देखा
जीवन की हर धारा को मजधार पर आते देखा क्योंकि हम जीवन को समज नहीं पाये आसानी से क्योंकि लोग ने जब जीत को चाहा हमने अपने आपको हार के साथ खड़ा देखा
क्योंकि जीत में तो हर बार काफी साथी दिखते है उनसे हम दूर ही रहते है अक्सर वह लोग हमारा इन्तज़ार नहीं करते है पर उन लोग पर गुस्सा करने से अच्छा है उनसे दूर ही रहना यह हमने है देखा
अक्सर लोग जीत के लिए साथ चाहते है पहले लगता था यह गलत है पर अब लगता है यह बात भी सही है क्योंकि जो जीत के लिए बने उस दोस्ती को हर बार हमने टूटते है देखा
पर अफ़सोस क्या उसके जाने का जिसके साथ सिर्फ दो दिन गुजरे हो अगर जीत के लिए कोई दोस्त बना है तो बेहतर तो उसका जीतकर जीवन से जाना होता है यह हमने है देखा
जीवन की हर धारा को हमने अलग सोच से देखा है जिसमे जीत का ही सिर्फ लेखाजोखा है उसे बुरा मानने से हमने उसे अपनाने में ही अक्कलमंदी को है देखा
जीवन की हर धारा में हर बार हमने अलग एहसास है देखा पर एक बात तो सच है किसी को जीताने का मजा कुछ अलग ही होता है यह हमने है देखा
सिर्फ इसीलिए कभी कभी जीवन में प्यारा लगता है रोते हुए के आँसू पोछ लेना हमने अक्सर देखा है तब मन को है लगता हमने अपने आँसू को किसीको पोछते हुए है देखा
मन की उस तस्सली को हमने अक्सर जीवन को पूरा करते हुए है देखा तो जीतनेवाले का आगे जाना एक मौका लगता है क्योंकि उसके बाद नये कसौटी को मिलते हुए हमने है देखा
पर हर बार जीतनेवाले के एहसास से ज्यादा गलत को हराने का सुख हमने है देखा कभी कभी अपने पुराने आँसू पोछने के लिए हमने अपने आपको दूसरे के आँसू पोछते हुए है देखा 

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