Thursday 19 January 2017

कविता. ११८०. मन को अलग।

                                        मन को अलग।
मन को अलग दिशाए हर बार बहलाती है कुछ मन को तसल्ली देती है तो कुछ उसे छिन के ले जाती है जो जीवन मे कई कहानियों कि पुकार हर पल मे देकर आगे बढती जाती है।
मन को अलग किनारों कि आदत बहलाती है कुछ मन को अलग खयालों कि तलाश देकर आगे बढती जाती है हर बार मन को अलग सुबह देकर आगे बढती जाती है।
मन को अलग इशारों से हर पल बहलाती है कुछ मन को अलग दास्तान देती है हर मौके पर अलग साँस देकर चलती है जिसे समझ लेने कि जरुरत हर बार बढती जाती है।
मन को अलग दिशाए हर पल बहलाती है कुछ दिशाओं की पहचान जीवन को अलग पुकार दे जाती है हर मौके पर वह जीवन मे कई किस्सों मे पुकार देकर बढती जाती है।
मन को अलग परख हर बार बहलाती है कुछ परख को समझ लेने कि चाहत हर पल जीवन मे कई इशारों से समझ देकर हर मौके पर आगे चलती है जो जीवन मे रोशनी देकर बढती जाती है।
मन को अलग समझ हर कदम मे बहलाती है कुछ अलग परख जीवन मे कई तरह के किनारे देकर हर पल जीवन को अलग पुकार देकर चलती है जो जीवन मे हर कदम को मकसद देकर बढती जाती है।
मन को अलग एहसास हर मौके मे बहलाती है कुछ अलग रोशनी देकर जीवन मे आगे लेकर चलती है क्योंकि मन मे हर राह पर अलग दिशा कि पुकार होती है जो खुशियाँ देकर बढती जाती है।
मन को अलग तलाश हर किनारे पर बहलाती है कुछ अलग तरह कि उम्मीद देकर आगे जाती है जो जीवन मे आगे चलती जाती है जो मन को कई तरह कि तलाश देकर बढती जाती है।
मन को अलग खयाल कि आस पर बहलाती है कुछ अलग तरह कि कोशिश मन मे हर बार रहती है जो मन को कई लब्जों के सहारे जीवन मे रोशनी देकर बढती जाती है।
मन को अलग किनारे कि पुकार हर बार जिन्दा रहती है जो जीवन मे कई इशारों से आगे चलती है जो जीवन मे हर पल को समझ लेने कि जरुरत हर बार देती है जो जीवन को उम्मीदे देकर बढती जाती है।

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