Monday, 18 January 2016

कविता ४४६. बिन मतलब के लब्ज

                                                        बिन मतलब के लब्ज
हर लब्ज में कुछ तो मतलब हमेशा छुपा होता है पर कभी कभी हम लब्जों  को जीवन में यूही जोड़ लेते है जिन्हे समज लेने पर भी मतलब नहीं बनते है
जीवन की हर धारा का कुछ और ही मतलब होता है जिसे समज लेने से ही जीवन की साँस अक्सर बनती है पर कभी कभी कुछ लब्जों से जिन्दगी की धारा बदलती है
लब्ज ही जीवन के मायने होते है जो हमें आगे ले जाते है हमें साँसे देते है जीवन को परख लो उसमे कई शुरुआत होती है जो हमे खुशियाँ देती है
लब्ज ही जीवन को बना लेते है वही हमें आगे ले जाते है उनसे ही तो जीवन की साँस बनती है पर हर बार उन पर चलना गलत बात होती है
क्योंकि किसी लब्ज को हम बिना समझे और बिना मतलब के ही जीवन में समझ लेते है जीवन के हर मोड़ की ताकद हम हर बार परख लेना चाहते है
लब्ज के अंदर मतलब तो हर बार हमारी सोच से ही बनते है पर हर बार हम कहाँ उन बातों को समज पाते है लब्ज ही हमारी ताकद बनते है
लब्ज की नई धारा जीवन को आगे तो ले जाती है पर कई बार लब्ज को मतलब दे जाती है जब लब्जों को यूही कहते है तो जीवन में मुश्किल आ जाती है
लब्ज ही जीवन में नई शुरुआत दे जाते है पर कभी लब्ज से हम कुछ नहीं बता पाते है लब्ज जीवन की परिभाषा हर बार नहीं होती है
जीवन की नई सोच लब्ज ही देती है जिन्हे समज लेने की जरूरत हमें अक्सर होती है लब्ज कभी कभी जीवन को मकसद तो देते है क्योंकि लब्ज को परख लेना कई बार हम भुला देते है
लब्ज ही तो जीवन को बनाते है पर हम लब्जों को कहाँ समज पाते है लब्ज ही अक्सर जीवन की ताकद बन जाते है पर फिर भी कई बार लब्ज बिन मतलब के होते है 

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