Friday 1 January 2016

कविता ४१३. चंदा कि रोशनी

                                   चंदा कि रोशनी
जब हमने चंदा मे अलग अलग तरह कि रोशनी देखी उसे परख लेने कि चाहत भी हमने की जब हम आँसू को छोड जीवन को आगे ले आये चंदा मे अलग तरह कि सादगी हर बार हमने देखी है
चंदा कि शीतल चांदनी हमे हर बार छुती है जो टूटी उम्मीदे है उन्हे फिर से जोडती है क्या हुआ चंदा तुम पर पाव हम ना रख पाए पर तुझे देख कर ही रात खुबसूरत होती है
पाने के लिए हर चीज हासिल करना जरुरी नही होता है क्योंकि कभी कभी सिर्फ होनेे के एहसास से दुनिया बनती है चाँद को सिर्फ देखकर जीवन कि खुशियाँ हासिल होती है
चंदा के किरणों मे जीवन कि खुशियाँ हर बार मिलती है क्योंकि उन किरणों से हर बार खुशियाँ मिलती है क्योंकि उस चाँद की रोशनी जीवन को छू लेती है चंदा के साथ रोशनी दे जाती है
चाँद के अंदर रोशनी रंग नया दे जाती है क्योंकि उसके अंदर चांदनी चुपके से चारो ओर फैलती है आसमाँ के अंदर अलग रंग दिखाती है रोशनी हर बादल मे फैलाती है
चाँद से निकल के दुनिया तो सूरज कि ओर जाती है उसे परख लेने कि जरुरत जीवन को रोशनी दे जाती है पर हमारे मन मे तो चंदा कि शीतल रोशनी घर कर जाती है
चाँद के अंदर शीतल रोशनी जीवन को हमे नई सुबह दिखाती है क्योंकि सुबह ही तो हमारी जरुरत होती है पर हमे तो उसकी उम्मीद अक्सर चंदा से मिलती है
क्योंकि सूरज कि तेज रोशनी हमारे आँखों मे चुभती है जो जीवन पर अक्सर असर करती है कभी उम्मीद से देखे सूरज कि ओर यह कहाँ हमारी हिम्मत होती है
सूरज को पाने से ज्यादा उस से दूरी कि ही मन मे चाहत होती है हमारे मन को चंदा कि उम्मीद और उसी कि हर बार आदत होती है उस शीतल रोशनी कि जरुरत होती है
चाँद के अंदर ही जाने क्यूँ जीवन कि ताकद हर बार हमे मिलती है नही उतर पायेंगे हम कभी चंदा पर फिर भी हम दिल से चाहते है क्योंकि उस पर उतरनेवाले कभी नही पछताते है

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