Tuesday 5 January 2016

कविता ४२०. किताब का लब्ज

                                           किताब का लब्ज
हर मोड पर अलग लब्ज लिखा मिलता है जिसे समज लेने मे जीवन का हर पल छुपा होता है पर किताब मे सबके लिए अलग लब्ज जरुरी होता है जो जीवन को रोशनी देता है
लब्ज के अंदर मतलब तो अलग होता है जिसे समज लेने से जीवन कि कहानी वह आगे बढाता है लब्ज तो हर बार जीवन को ताकद दे जाते है पर अहम लब्ज हर मोड पर बदलते है
लब्जों के अंदर हर किसी कि जरुरत छुपी होती है जो हर बार हर किसी के लिए अलग अलग होती है लब्ज ही जीवन कि ताकद होती है जो मतलब देते है
हमारे जीवन मे लब्ज अलग एहसास देते है लब्ज ही जीवन का मतलब दे जाते है किसी के लिए एक तरह का तो किसीके लिए अलग लब्ज अहम बनता है क्योंकि इन्सान एक जैसा नही होता है
एक लब्ज जो हम समज ले उनमे मतलब कई होते है उन्हे कभी हम परख लेते है लब्ज ही जीवन को मतलब दे जाते है पर कौन से यह बात हमे चुननी पडती है
हर किताब मे अलग अलग मतलब लिखे है लब्ज तो हर बार जीवन को अलग एहसास देते है लब्ज को समज लेना हर बार अहम होता है लब्ज ही जीवन को हर मोड पर बनाते है
क्योंकि लब्ज ही तो हमे कुछ ना कुछ दे जाते है लब्ज ही हमारी ताकद हर बार होते है जीवन कि सही मोड पर मुडने कि ताकद ही हमे जीवन देती है लब्ज ही जीवन पर असर करता है
लब्ज हमे सही और गलत बनाते है सही लब्ज चुनना जीवन को मतलब देता है वही जीवन को नई शुरुआत देता है पर कई बार हम बस यही सोचते है लब्ज ही हमारा जीवन बनाता है
लब्ज ही तो हमारे जीवन को मतलब दे जाता है उसे समज लेना जरुरी होता है लब्ज मे अलग मतलब हर बार होते है लब्ज को सही चुनकर आगे बढना ही अकलमंदी होती है
लब्ज ही जीवन को सही करते है पर हर इन्सान के अंदर अलग एहसास देते है लब्ज ही जीवन कि सही जरुरत होता है लब्ज ही हमे हर बार आगे ले जाता है

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