Friday 29 January 2016

कविता ४६८. मन के अंदर की ताकद

                                                             मन के अंदर की ताकद
हर नदी को देखकर कभी सोचते थे लोग पर आज कल सिर्फ नल के पानी में भी हम सोच लेते है क्योंकि सोच तो मन की होती है उसे क्या करना है हम पानी कहाँ देख लेते है
कभी दरिया तक जाते थे अब दर्या को भी मन से पास बुला लेते है मन को जो समझा लेते है तो जीवन की धारा कुछ और तरीके से ही परख लेते है जीवन को समझ ले तो उसमे खास बाते कई बार पाते है
जीवन को परख लेना जीवन की सोच को समझ लेने का हिस्सा पाते है जब जब हम समझ लेते है जीवन को उस में मन की ताकद को ज्यादा अहम पाते है
नदियाँ के अंदर कई मोड़ और कई किनारे नजर आते है पर मन तो एक ऐसा दरिया बनता है जिसमे छोर तो कई है पर जब उसमे बहते है रुक कहाँ पाते है
मन की ताकद से हम जब जीवन को समज लेना चाहते है उस जीवन की धारा का मतलब हर बार अहम सा पाते है मन को मजबूत बताते है
मन तो वह मजबूत चीज है जिसे हम अक्सर समझ लेना चाहते है जिसे परख कर जीवन की हर जंग जीत लेना चाहते है पर वह जो मन को सच में परख लेते है
वह आसानी से समझ जाते है की मन को जीत की भूख नहीं है मन की खुशियाँ तो हम छोटी छोटी बातों में आसानी से पाते है उनमे ताकद पा जाते है
मन में अलग अलग रंग अक्सर नजर आते है जो जीवन की हर सुबह को समझ लेने में हमारी हर बार मदद करते है मन ही तो वह ताकद है जिसे हम समझ लेना चाहते है
मन जीवन की वह परछाई है जिसे हम पकड़ लेना चाहते है जिसे हर बार समझ कर आसानी से जीवन की धारा को अलग तरीके से बताते है उसमे सच्चाई को समझ जाते है
मन की ताकद हर बार उम्मीदे देती है उस ताकद में ही जीवन की हर राह होती है तो उस मन से जी लो क्योंकि मन के अंदर ही धरती पर जन्नत मिल पाती है

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