Wednesday 6 January 2016

कविता ४२२. तसबीर के अंदर

                                                              तसबीर के अंदर 
कभी किसी तसबीर से जवाब नही मिलता  कितनी आसान वह दुनिया होती है जिसमे एक तसबीर से भी जीवन कि कहानी बयान होती तो जीवन कितना आसान होता
तसबीर मे ही कुछ एहसास छुपे होते है पर अक्सर हमने देखा है हम उन्हे गलत समज लेते है अगर तसबीर बात करती तो जीवन कि हर लकिर जिन्दा होती है
पर जीवन इतना आसान नही होता तसबीर के अंदर कुछ अलग खयाल हर बार होते है अगर उन्हे सही समजे तो अच्छा है वरना तसबीर ही गलत जीवन मे है लगती
जब जब फुरसत मे हम उन तसबीरों को परख लेते है हर बारी कुछ गडबड तो जीवन मे जरुर हो जाती है तसबीर के अंदर ही दुनिया कि अलग सोच होती है
तसबीर के अंदर अलग सोच बसी होती है जो जीवन मे अलग एहसास हर बार देती है तसबीर मे जीवन को परख लेना हर बार अहम होता है पर उसमे जीवन को कहाँ हम समजते है
हम चाहते है कि तसबीर कभी सीधी सीधी बात भी हमे बता दे कभी बातों का मतलब सही वह धीमे से दे जाये पर तसबीर हम पर वह एहसास नही करती है
वह कुछ नही बताती चुपचाप खडी रहती है हम कई बार कहते है जो वह बात सही नही होती उस बजह से हर बात में मुश्किल हर बार होती है
तसबीर में ही अलग अलग मतलब जिन्हे ख़ुशी जिन्दा होती है उन्हें हम हर बार समज लेना हर बार चाहते रहते है तसबीर ही जीवन को मतलब दे जाती है
तसबीर में अलग एहसास जीवन को मतलब दे जाते है तसबीर के अंदर अलग अलग मतलब जो जीवन को ताकद हर मोड़ पर हमेशा दे जाते है
तसबीर ही हमें जीवन की उम्मीद देती है उसे सही तरीके से समज लेने की जरूरत होती है क्योंकि जीवन की धारा तभी बनती है
तसबीर के अंदर अलग सोच हमेशा होती है जिसे समज लेने की हमारे अंदर ताकद होती है तसबीर तो हमारे समज में मुश्किल से आती है पर फिर भी तसबीर कहाँ सीधी बन पाती है 

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