Tuesday 26 January 2016

कविता ४६२. फूलों का सौदागर

                                                                 फूलों का सौदागर
कभी जो कोई बात दिल को छू जाये उसे हम आसानी से बिना रुके कह देते है पर कभी कुछ बाते मन में ही रख देते है क्योकि दिल तो चाहता है कहना
पर फिर भी उस मन को हम रोक लेते है चाहे उसे दिल कहे या मन उसमे काटे तो गलत बातों के अक्सर चुभते है जीवन की धारा को हम समझ लेना चाहते है
बिना किसी उम्मीद के ही हम जीवन जीना चाहते है जब आगे बढ़ते है तो जीवन की उम्मीदों को समझ लेते है पर एक बात तो अक्सर देखी है दूसरों से उम्मीद काटे ही देती है
कोई दे कुछ तो मानो जीवन में वही भगवान मिले है क्योंकि फूल देनेवालों से ज्यादा जाने क्यूँ इस मनमे काटे देनेवाले ही रहते है जो मन को चोट देते है
जिनका हक़ है दिल पर वह तो बस फूलों के सौदागर है पर ऐसे सौदागर कहाँ दुनिया में आसानी से मिलते है पर सवाल तो बस यह है मन में हम क्या करे जीवन में
क्योंकी फूलों की कमी को काटो से भर दे जीवन में पर यह दिल चिल्ला चिल्ला कर कहता है मन इन्तजार तो कर ले क्या हुआ अगर आज काटे है कल फूल होगे जीवन में
दिल तो कहता है मन आगे बढ़ जाये तो जीवन का एहसास देता है हर पल में जीवन को काटो से ज्यादा दिलचस्पी है हर पल फूलों में
जीवन को अगर काटो से भर दोगे तो क्या पाओगे जीवन में जब फूलों का सौदागर फूल लेके आयेगा तो क्या कहोगे उसे जीवन में क्या समझोगे जीवन में
जब जब हम जीवन को परखे मन बस बात यही कहता है यह कोने खाली ही सही है हमारे जीवन में क्यों की काटो से भरने से ज्यादा अच्छा है उन्हें यादों से भर दे जीवन में
क्योंकि जब फूल आयेंगे यादे छुपकेसे सिमट कर जगह देगी फूलों को जीवन में काटे एक बार आ जाये तो कभी दूर नही हो पायेंगे हमारे जीवन से 

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