Thursday 28 January 2016

कविता ४६७. साथ नही दे पाते

                                                          साथ नही दे पाते  
हर लब्ज के अंदर मतलब छुपे होते है पर कहाँ हम उन्हें हम समझ पाते है क्योंकि लोग कहाँ हमे दुनिया में समझ पाते है पर जाने क्यूँ वह जीवन में चाहते है की हर पल हम उन्हें समझ ले जब वह हमे समझ नही पाते है
अगर हम उन्हें समझ नही पाते है तो कैसे जीवन को समझ लेते है लब्ज के अंदर अलग अलग एहसास जीवन को साँसे देते है जिन्हे समझ लेना जरुरी हम हर बार समझते है दूसरों को समझ लेते है
क्योंकि वह देना नहीं छिन लेना जानते है जो जीवन कि ताकद को आगे ले जाना चाहते है हम जीवन को तो हर बार परखते है की दूर रहे उनसे जो हमे समझना नहीं चाहते है क्योंकि जीवन की उस धारा से हम दूर ही रहना चाहते है
पर अफ़सोस तो इस बात का है जब हमे कुछ हासिल होता है तब वह लोग छिन लेना चाहते है जब हमारे दुःख में कोई साथ ना दे तो जीवन में वह जाने क्यूँ हमसे उम्मीदे हर बार रखता है
दुःख देनेवालों को उनका एहसास नहीं होता पर चोट खानेवाले सजा तो ना दे पर आप के साथ कभी नही होते है जीवन में आपको खुशियाँ कभी नही दे पाते है जीवन में अक्सर चोट ही दे जाते है
लब्ज ही जीवन को नई शुरुवात देते है पर यह उम्मीद गलत है की जिनको चोट आप दे वह आपके तारीफ में कोई बात भी कह दे इन्सान तो बस इन्सान है भगवान तो नही चोट ना दे आपको पर साथ भी नही है
जीवन की धारा में जो लब्ज काटो के तरह चुभते है वह जीवन की अलग शुरुआत हर बार देते है वह बताते है की कब हम सही और कब हम गलत है काटे चुभते है तो आँसू अल्फाज देते है
लब्ज ही जीवन की शुरुआत देते है जो जीवन को नया मतलब हर बार देते है लब्जों के सहारे लोग अक्सर छुपके बताते है साथ नहीं यह जताते है पर कुछ इन्सान समज ही नहीं पाते है
साथ जिसकी नहीं दियी है उस से कम से कम उम्मीद ना हो यह बात ही समज नहीं पाते है समज तो जाते है की हक नहीं है पर फिर भी जाने क्यों हक जताते है चीजे छिनने के लिए हर बार बहाने बनाते है
तो जीवन में कुछ चाहो तो प्यार से कहना क्योंकि नफरत के संग हम कुछ नही पाते है कुछ लोग आपको चोट ना दे लेकिन दर्द भुला ना पाते है साथ नही दे पाते है  

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