Wednesday 20 January 2016

कविता ४५१. हर चीज को समझना

                                                         हर चीज को समझना
हर चीज को समझ लेना हर बार कहाँ हो पाता है कुछ चीजों को तो इन्सान समझ लेता है कुछ चीजों को इन्सान भुला नहीं पाता है पर सच तो यह है
जिस चीज को इन्सान सही तरीके से समझ ले उस में वह अक्सर अपना खुदा पा लेता है क्यों ढूँढे उस ईश्वर को जब वह हमारे दिल में सदा ही जिन्दा रहता है
कभी हम उसे समज लेते है तो कभी उस में मुश्किल का एहसास भी होता है जीवन को समज ले तो उसमे जीवन की नई शुरुआत होती रहती है
इन्सान का जीवन में आगे आना जरुरी होता है पर इन्सान कहाँ समज पाता है की उसका अपनी सोच से ऊपर उठना कितना जरुरी होता है
अक्सर खुद की खुशियों की तलाश में हम कुछ ऐसा कर जाते है की खुद की खुशियों से ही खुद को दूर कर जाते है जीवन की धारा को हम हर पल समज लेना चाहते है
पर हर बार हम जीवन को कुछ अलग ही पाते है जीवन को परख लेना हम अक्सर आसान नहीं पाते है हम हर बार यह सोचते है की जीवन की नई राह हम बनाते है
पर कई बार सिर्फ किस्मत से ही हमें रास्त्ते मिल जाते है तो जीवन में हर बार हम क्यूँ कतराते है क्यूँ हम जीवन की राहों को समज नहीं पाते है
दिल के अंदर अलग अलग ख़याल हर पल तो होते ही है जो जीवन की धारा को कुछ अलग तरीके से समझाते है जीवन को अगर हम समझ ले तो वह उम्मीद दे जाते है
दिल के किसी कोने में ही तो जीवन के ख़याल छुपे होते है पर उन्हें हम परखे या ना परखे यह हम जीवन का हिस्सा हर बार हम समझ लेना चाहते है
हर चीज को हम समझ लेना चाहते है क्योंकि हर चीज के अंदर हम कुछ अलग उम्मीदे पाते है जिन्हे समझ कर ही हम जीवन की शुरुआत हर मोड़ पर करना चाहते है 

No comments:

Post a Comment

कविता. ५१२४. बदलाव को लहरों की।

                                बदलाव को लहरों की। बदलाव को लहरों की मुस्कान कोशिश सुनाती है दिशाओं को नजारों संग आहट तराना सुनाती है आवाजों...