Tuesday, 3 May 2016

कविता ६५८. बात को भुला देना

                                       बात को भुला देना
किसी बात को भुला देने से जीवन कि कहानी आगे बढती हो तो क्यूँ ना उसे इस पल ही भुलाकर हम जीवन मे चुपके से आगे चल दे तो बात गलत नही होती है
जो बात भुलाकर दोहराई जाती है तो जीवन कि रोशनी कुछ बदलसी जाती है पर हर बार हर मोड पर किसी बात को याद रखने से जिन्दगी कि खुशियाँ हमे नही मिल पाती है
अगर जीवन मे बातों को समझते रहे तो जीवन कि आदत कुछ अलग नजर आती है जो जीवन को आगे चलने कि बडी अच्छी दिशा बताती है
जो रोशनी दे जाती है बस तभी जब हम अपनी दुनिया से इन्सान कि गलती भुलाकर अपने भले के लिए जीवन कि दिशाए बदलकर आगे जाते है
पुरानी बात को भुलाने कि तो हर पल हमारी आदत होती है जो हमारे जीवन मे रोशनी बन के चमकती है क्योंकि पुरानी चोट बस नासूर बन के ही जीवन मे आगे आती है
जिस बात को भुलाकर चलने कि जरुरत हो उसे भुलाने से ही तो हमारी किस्मत हर बार बनती है जिसे भुलकर जाने कि जरुरत हर पल होती है
बात को भुला देना जीवन को अलग अलग मौकों को समझकर आगे बढने कि आदत दे जाता है उसे समझ लेना ही हमारे लिए रोशनी लाता है
बात को परखकर जीवन कि धारा हर पल बदलती रहती है बात को भुला देना जीवन कि कुछ पलों कि जरुरत होती है क्योंकि तभी तो हमारी दुनिया बनती है
बात को मन के अंदर छुपाकर रखना बात सही नही होती है हमे उसे समझ लेने कि आदत हर बार होती ही है जो हमे अलग उम्मीदे हर बार दे जाती है
भुली बातों को याद रखना कुछ लम्हों कि जरुरत होती है तो कुछ लम्हों को भुला देना ही हमारी जीवन कि सही समझ होती है

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