Friday 20 May 2016

कविता ६९२. जमाने को समझकर

                                                 जमाने को समझकर
जमाने को समझकर कोई नई दिशाए बदल देती है पर कई बार वह सही नही होती है पर किस्मत को रोने कि जरुरत नही होती है
जमाने कि गलत राह से अपनी किस्मत नही बदल पाती है जब इन्सान को परखकर ही तो दुनिया आगे जाती है पर उस परख मे गलती बडी आम होती है
जीवन कि धारा तो बदलाव कि पेहचान होती है जिसमे दुनिया हर पल बदलती है जिसे समझकर आगे जाने कि जरुरत हर बार होती है
जमाने को पेहचान लेना जीवन कि हर बार एक अलग चाहत होती है जिसे परख लेना ही तो जीवन का मतलब होता है
जमाने को समझकर आगे जाना ही तो जीवन कि सच्ची ताकद होती है जो जीवन कि कहानी हर पल आगे लेकर जाती है
जमाना तो सही गलत कि सोच रखता है जिसे समझकर आगे बढना ही जीवन कि जरुरत हर मोड पर होती है जिसकी जरुरत होती है
जमाने मे ही तो अलग ताकद होती है जो जीवन कि दिशाए बदलकर आगे लेकर जाती है हमे आगे लेकर चलती जाती है
जमाने मे ही तो जीवन कि कहानी छुपी होती है जो जीवन कि सच्ची अहमियत होती है जो जीवन को बदलकर रख देती है आगे लेकर जाती है
जमाने को समझ लेने कि हर बार जरुरत होती है जो जीवन कि धारा बदलकर रख देती है जिसमे जीवन कि सही सोच छुपी होती है
जमाने को परखकर जाना तो है पर उसे बिना दोहराये भी जीवन कि कहानी बन पाती है जो जीवन कि कहानी हर मोड पर नया रंग दे जाती है 

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