Thursday 19 May 2016

कविता ६९०. हर रास्त्ते कि एक मंजिल

                                              हर रास्त्ते कि एक मंजिल
हर रास्त्ते कि एक मंजिल तो जरुर होती है जो जीवन कि साँसे बनती है क्योंकि आखरी पडाव की मंजिल तो हर बार होती है
रास्त्तों को समझ लेने कि जरुरत होती है जिसे परखकर ही तो जीवन कि सोच आगे लेकर चलती चली जाती है जो जीवन कि धारा बदल जाती है
मंजिल तो हर बार जीवन कि कहानी को आगे लेकर जाती है जिसे समझकर आगे बढते रहने कि जरुरत हर बार होती ही है
मंजिल ही तो जीवन कि सबसे अहम चीज होती है जो हमे आगे लेकर जाती है नई शुरुआत देती रहती है जीत हो या हार यह बात अहम नही होती है
मंजिल तो जीवन को हर पल अलग राह दिखाती जाती है किसी मंजिल को समझकर आगे बढने कि चाहत हर बार असर कर जाती है
मंजिल तो हर रास्त्ते कि आखिर होती है जिसे समझकर आगे जाने मे ही जीवन कि अक्कलमंदी होती है बिना आखिर कि कोई राह नही होती है
मंजिल तो जीवन को समझकर आगे ले जाती है कोशिश होती है जीवन कि जो हमे मतलब लेकर आगे जाने कि जरुरत होती है
रास्त्ते मे कई मंजिले अक्सर होती है जिन्हे समझकर आगे बढते जाने की अजीब जरुरत होती है याने के मंजिल आखिर होकर भी आखिर नही होती है
मंजिल को समझकर जीवन के हर मौके पर मतलब दे जाती है जिन्हे परखकर आगे चलने कि अहमियत होती है जो दिशाए बदल देती है
रास्त्ते को समझकर कई तरीकों से जीवन को परखकर चलते रहने कि जरुरत होती है क्योंकि मंजिले कई आती जाती है पर वह मंजिले आखरी नही होती है 

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