Monday, 16 May 2016

कविता ६८५. मन के अंदर कि शुरुआत

                                          मन के अंदर कि शुरुआत
मन के अंदर जीवन कि शुरुआत नई होती है मन के कोनों मे जीवन कि दुनिया कि धारा बदलकर रख देती है नई शुरुआत देती है
मन को समझ के एहसास को अलग अलग तरीके से समझकर हर मौके पर सोच को अलग तरह से समझ लेने कि अहमियत होती है
मन कि दुनिया अलग अलग दिशाओं से घूमती रहती है जिसे समझकर आगे बढने कि आदत हमे हर पल मे होती है
मन तो कई खयालों के खुशबू से जीता है उन्हे समझ लेने कि जरुरत जीवन को हर मोड पर होती है पर जाने क्यूँ किसी कोने मे मन कि खुशबू रहती है
जीवन को समझ लेने कि जरुरत दुनिया को तो होती रहती है जिसमे दुनिया जिन्दा रहती है जिसकी शुरुआत अक्सर अहम रहती है
मन के कई रंगों के संग दुनिया जिन्दा रहती है जिसे परखकर जी लेते है पर कितनी छोटीसी जिन्दगी होती है जो जीवन के रंग बदलती है
मन को तरह तरह के रंगों मे समझकर आगे बढने से ही तो जीवन कि खुशियाँ मिलती है पर कभी कभी बंद आँखों मे ही खुशियाँ छुपी रहती है
मन मे कई तरह के मौके होते है जिन्हे समझ लेने से दुनिया मिलती है पर कभी किसी मौके पर खुदको भुलाकर चलने से दुनिया बनती है
पर मन के किसी कोने कोई याद जो छुप जाती है जीवन कि कहानी बदलकर आगे चलती जाती है रोशनी देकर जाती है
पर अक्सर जीवन के अंदर कहानी कोई अलग नजर आती है जिसे समझकर दुनिया ही सही तरह कि रोशनी देकर हर बार जाती है 

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