Monday 9 May 2016

कविता ६७०. उलझन मे लियी साँसे

                                                उलझन मे लियी साँसे
हर पल हर मौके मे जीवन कि साँसे जिन्दा रह नही पाती है कुछ पल तो ऐसे भी होते है जब जिन्दगी रुक जाना भी चाहती है
पर जो उस पल मे जी ले दुनिया उसकी ही होती है दुनिया कई रंगों को परखकर आगे चलना सिखाती रहती है मुश्किल से डरना सिखाती रहती है
जो मुश्किल के पलों को पार करे दुनिया बस उसकी होती है क्योंकि दुनिया तो कई आईनों के अक्स से बनकर ही तो आगे बढती है
साँसे वही जो मुश्किल मे भी ना रुके जो हर पल शिद्त से चलती है जीवन कि धारा हर पल मुश्किल के निशान बदलकर चलती है
साँसे तो जीवन कि नई शुरुआत बनती है जो किसी कोने मे हमारे जीवन कि आवाज बन के चलती रहती है जो जीवन कि दिशाए बदलकर चलती है
जिस मौके मे जिस पल मे दुनिया बदलकर चलती है उसे परखकर ही तो जीवन कि हर राह बनती और बदलती है
मौके को समझकर जीवन कि आदत बदलनी पडती है जिसे समझकर दुनिया कि दिशाए हर पल कुछ नई बनकर चलती है
जिस धारा को जिस पल को समझकर जीवन कि हसरत चलती है उस पल तो कोई भी साँस ले सकता है पर उलझन मे भी जो साँसे ले उसकी दुनिया तो बनती है
हर साँस के अंदर जीवन कि एक नई ताकद जिन्दा रहती है पर जो उन्हे मुश्किल मे ले सके उसकी दुनिया ही तो हर पल जिन्दा रहती है
उलझन तो जीवन कि सच्चाई है उस से उपर उठने कि जरुरत रहती है जो मुश्किल मे जीवन जी पाये उसकी ही तो यह दुनिया कि मेहफिल रहती है

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