Saturday, 14 May 2016

कविता ६८१. सूरज का अंधियारा

                                               सूरज का अंधियारा
कुछ बार तो सूरज से बात करने को दिल चाहता है क्योंकि सब कहते है सूरज अंधियारा भगाता है तो दिल कहता है उस से ही जीवन बनता है
तो हम कई बार कोशिश करते है जीवन के अंदर दुनिया को बदल लेना जरुरी होता है पर सिर्फ लोगों के कहने से जब चलते है मन मे चोट खाते है
सूरज कि आग को समझकर मन कि जलन ही तो मेहसूस करते है जिसे समझकर ही हम सीखते है कि जीवन कि राहों मे हम आगे कैसे बढते है
क्योंकि सूरज कि चोट से हम सीख लेते है जिसे आगे बढकर हम जीवन मे परख वही नतीजे सही किसम के हर पल हर मोड पर होते है
जीवन कि जलन को तो बस हम ही मेहसूस करते है जिसमे हम जीवन कि सोच को समझकर आगे लेकर चलते है
सूरज कि चाहत मे अक्सर हम जीवन मे जलते रहते है जिसकी चोट से आँसू अक्सर हमारे आँखों से बहते रहते है
किरणों कि अंदर कई चीजों को हम अक्सर मेहसूस करते रहते है जिन्हे हम कई राहों मे परख लेते है जिनके कई किनारे होते है
पर सूरज से ज्यादा हम तो उन लोगों से डरते है जो हमे सूरज के पास जाने कि सलाह देकर आगे बढते रहते है
सूरज कि जलन जीवन को सीखाती है जीवन मे रोशनी जरुरी होती है जो हमे जीवन मे खुशियाँ देती है पर उसे छूँकर जाने कि जरुरत नही होती है
सूरज का उजियाला तो प्यारा है पर उसे छूँ लो तो दुनिया जलती है जीवन मे गुस्से कि हालत तो कुछ ऐसी ही होती है हमे उसकी जरुरत होती है 

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