Monday, 9 May 2016

कविता ६७१. चाँद हो या सूरज

                                             चाँद हो या सूरज
चाँद हो या सूरज दोनों कि अपनी ताकद हर पल होती है जो हमे समझकर आगे हर पल ले जाती है हम उनमे किसी को भी चाहे दुनिया तो बदलती है
पर दोनों मे ही हमारी किस्मत कौन बनाते है काश के हम दुनिया मे यह समझ पाते हम यह कभी परख नही पाते है दुनिया मे हम अपने तरीके से समझ लेना चाहते है
क्या सही है उस बात को समझकर आगे जाना है पर चाँद और सूरज मे से चुनना चाहते है जीवन को हर पल तय करना चाहते है
पर जीवन तो अपनी धारा अपने मर्जी से ही दुनिया तय करती रहती है दुनिया कि खुशियाँ हर पल जीवन कि आदत बदलकर जाती है
पर जो चीजे चुनने कि जरुरत होती है उन्हे बिना चुने आगे जाने कि आदत ही सही होती है पर दुनिया को अक्सर वही होती है
जीवन को समझकर आगे चलने के लिए हर बार चुनने कि आदत पड जाती है जो जीवन के लिए हर बार मुश्किल बनकर नजर आती है
जीवन के कुछ पलों मे चीजों को तय करने कि अहमियत होती है तो कभी कभी चुनाव ही जीवन कि सबसे बडी जरुरत होती है
क्योंकि सुबह सूरज कि और रात अक्सर चाँद कि होती है जिसे बदल लेने कि जरुरत हमे हर बार हर पल नही होती है
अलग अलग वक्त मे अलग अलग किस्मत जिन्दा रहती है जो दुनिया के हर मोड पर मतलब देती है उनमे से एक को चुनने कि जरुरत नही होती है
पर फिर भी हम चुन लेते है और फिर बिघडती हमारी किस्मत है जिसे समझ लेने कि हमे अक्सर आदत नही होती है

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