Wednesday, 1 July 2015

कविता ४६. राय

                                                                      राय
कोशिश तो हमने की थी वह बनने की जो सब को भाये पर कुछ ऐसे हम बने की खुद को भी ना लुभाये
खुश उसे कैसे करे जो हमे कभी ना समज पाये हम तो बस दुःख में है की जाने क्यों हम कोशिश की
खुद को बहलाये जो हम से कभी ना जुड़े हो वह हमको क्या समज पाये जो अपने में ही गुम हो क्यों हम माँगे
उन सब की राय जो हमारे दुःख में रोये वही तो हमे समज पाये जो अपने में ही मगन हमेशा उन्हें क्या हमारा दर्द सताये
हर बार जब जब हमने कोशिश की पर जब हम सोच रहते है हर तरह  की सोच हमारे जिन्दगी के लिए अहम है
फिर हम क्यों दुसरे की सोच को बदलने की कोशिश में हर बार मुश्किल लाये दुसरे कभी ना समजे हमको है
यही हमारी राय हम जब खुद ही जानते है की वह लोग कभी ना हमे मानते है तो फिर क्यों कोशिश करते है
की वह हमे समज पाये शायद इसी लिए क्यों उम्मीद हमे यही सिखाये कोशिश ही सही राह है हमारा मन बस कहता जाये
जो दिपक बुझ  जाते है उन्हें भी उम्मीद जगाये काले काले बादल में से सुंदर बारिश बिजली के साथ ही आये
हम चाहे कितना भी कह दे बिजली बिन बारिश आ जाये पर ऐसा कभी नहीं होता है बिजली तो एक साथ ही आये
जो डर जाये बिजली से वह बारिश का क्या आनंद उठाये हम जब बिजली संग कडके तो ही बारिश को समज भी पाये
जो चाहत को समजे वह उसे खोने से नहीं डरता है चाहे दुनिया कुछ भी कह दे वह देता है अपनी राय हर बार जो हम किस मोड़ पर समजे दुनिया को या फिर हमे दुनिया समजाये
एक बात तो सच है जो खुद की बात पे यकीन हो तो कह देते है हम बिना सोचे की दूसरा उसे अपनाये या न अपनाये
हर कोई है आजाद परिंदा चाहे जैसा उड़ता जाये हमने तो बस अपनी कह दी मानो या ना मनो यह आपकी सोच ओर राय 

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