Friday, 31 July 2015

कविता १०५. कुछ साथी

                                                                      कुछ साथी
खुबसूरत रंग को दुनिया तो समज लेती है उनके अंदर जीवन की खुशियाँ ही तो वह पाती है पर जब जब दुःख आ जाये तो अपने आप को दूर कर लेती है
दुनिया में तरह तरह के रंग तो अक्सर होते है खुशियाँ तो वह ले लेती है पर दुःख को अपने लिए छोड़ के भी चली जाती है
जब जब दुनिया में तरह तरह रंग उतर कर आते है हम चाहते है खुशियों के साथ वह हमारे दुःखो को भी जीवन में ले लेते  पर दुनिया ऐसा नहीं करती है
वह खुशियों को तो अपना लेती है पर दुःख तो हमारे लिए अक्सर छोड़ के चली जाती है खुशियाँ के अंदर तो दुनिया हमेशा साथ ही होती है
पर जब जब गम आते है वह मन की चोटों को समज ना पाती क्युकी दुनिया के पास ऐसा वक्त नहीं है जिस में वह हमें समज पाती है
पर हम क्यों उम्मीद करे उनसे समज की जो वह उपर से दिखलाती है वह तो सिर्फ वही सोच है जो दुनिया में असर कर जाती है
पर सचाई तो बस यही है की दुनिया तो आसानी से मुकर जाती है चोट लगे जो अपने दिल को तो वह हमें ही इल्जाम  लगाकर खुद पीछा छुड़ाती है
जब जब दुनिया को समजो तो दुनिया अलग अलग रंग ही दिखाती है दुःख में तो सिर्फ वही साथ देते है जो सचमुच में हमारे साथी है
जब जब हम आगे बढ़ जाये दुनिया खुशियाँ लेने आती है पर हर बार दुःखों के पलों में दुनिया साथ नहीं देती बस दोस्ती ही काम आती है
पर जब गम आते है तो जिन्दगी बताती है कौन अपना दोस्त है और कौन है दुनिया क्युकी दुनिया का हिस्सा बन के भागे ऐसे भी कई साथी है

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