Wednesday 15 July 2015

कविता ७४. सारे ख्वाब

                                                                        सारे ख्वाब
सारे ख्वाबों में दिखते वह दीप जो उम्मीदों से जलते है हर बार जब हम सोचा करते है ख्वाब तो  सिर्फ ख्वाब है
पर उन ख्वाबों में तो उम्मीदों के उज्जाले होते है
हर ख्वाब भी अपनी किस्मत लाता है जीवन उजाला आता है ख्वाबो के पास ही तो हम खुशियों की चाबी रखते है हर बार जब ख्वाबों में जिन्दा रहते है उन्ही में हम अपनी दुनिया समजते है सारी ख्वाबों के अंदर हम नयी नयी दुनिया जीते है
जब जब हम आगे बढ़ते है ख्वाब ही तो अपने साथी होते है बचपन से जिनके हाथ को थामा हमने वह हर हाथ ख्वाबों में जिन्दा होते है
जिन ख्वाबों में सचाई नहीं है उन्ही ख्वाबों में हम जीना चाहते है सारे ख्वाब जिनमे हम जीते है ख्वाबों के अंदर तो हम नयी दुनिया पाते है
ख्वाब तो वह तसबीर है जिसमे हम हर बार जिन्दा रहते है पर उन ख्वाबों में जिनमे हम जीते है उनमें हम नयी दुनिया देखते है
पर जो ख्वाब जो जिन्दा रह ना पाते है उनके अंदर नये तरह के ख्वाब हमें दिखते है हम जीते है हर ख्वाबों में हम अपनी दुनिया जीते है
ख्वाब तो अक्सर वह होते है जिनमे हम जिन्दा रहते है हम बार बार यही सोच रखते है की काश ख्वाब सच होते पर अगर वह ख्वाब मन में सच होते है
तो उन ख्वाबों में भी सचाई के किनारे जरुर होते है जिन्हे देखकर हम हर बार जीना सीखते है ख्वाबों के मतलब को भी हम काश समज लेते है
तो ही वह सारे ख्वाब हमारे जीवन में सच होते है तो ख्वाबों को जी लेते है हम तो क्यू उन्हें ना सच कहे हम आखिर दोनों ख्वाब तो सच ही होते है 

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