Monday 20 July 2015

कविता ८३. काटो से दोस्ती

                                                            काटो से दोस्ती
हर बार जो हम समजे बातों में कई मोड़ आते है उस मोड़ पर चलते है जिनमे उम्मीदे पाते है हर बार जो समजे उनमे उम्मीदे नज़र आती है
हर मोड़ पर जब चलते है कोई उम्मीदें मन में हम लाते है जिनमे हम दुनिया को देखते रहते है पर उस उम्मीद के अंदर हम भगवान को पाते है
जिनमे हम सचाई का दीप जलाते है काटे तो कही होते है जो राह में चुबते है पर बस वही काटे होते है जिनमे मन को दर्द देते है
पर वह काटे हर बार दुःख की बजह तो होते है पर सच्ची राह कई बार उनकी बजह नहीं होती जब जब हम सच्ची राह से आगे बढ़ जाते है
हर दुःख पर सच्चाई की ओर उंगली दिखाते है हर बार जब चलते है कभी कभी गम भी पाते है पर सही काम कर के गम मिले जो मनको चोट दिलाते है
पर उस काम का गम या ख़ुशी पहलेसे ही तय होती है यह सोच तो मन में है पर उसे कहा हम जिन्दगी में अपनाते है
सही राह पर चलते है और जन्नत पाना चाहते है पर हमें यह बात नहीं समजती की इतनी आसानी से लोग जन्नत नहीं पाते है
सही राह पर जब चल दे काटे तो आते है वही जीतता है दुनिया में जो काटो को अपनाता है फूलों को चाहनेवाले हजारो होते है
जो काटो को अपना पाये वही दुनिया में खुशियाँ चुनते है हम सब तो सिर्फ फूलों से घिरना चाहते है और पत्तों को अपनाते है
कुछ तुलसी जैसे पत्तों को भी हमारी तरह चाहने लगते है पर काटो को जो चाहे उसका मिलना मुश्किल है उसी तरह से दुनिया का जन्नत बनना थोड़ा मुश्किल है
पर फिर भी अगर उस बात को हम समजे तो नामुमकिन कुछ भी नहीं है दुनिया में कोशिश करे तो काटो से दोस्ती भी मुश्किल नहीं है 

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